कुमार केशव, वरिष्ठ खेल-पत्रकार
Azadi Ka Amrit Mahotsav: 15 अगस्त, 1947 का मुबारक दिन था, जब गुलामी की सलाखों को तोड़कर भारत आजाद हुआ. एक वह दिन और एक आज का दिन. भारत ने इस दौरान प्रगति की अनुपम कहानी लिखी है. 76 वर्षों के इस कालखंड में हमने विकास के नये मानक गढ़े हैं, सफलता के नवीन प्रतिमान स्थापित किये हैं. आप किसी भी सेक्टर को उठाकर देखिए, भारत ने उसमें अपना सिक्का जमाया है. खेल जगत भी इससे अछूता नहीं है. आंकड़े गवाह हैं कि दुनियाभर में, खेलों की लोकप्रियता और इससे जुड़े कारोबार को बढ़ाने में सबसे बड़ा योगदान हमारा है. इससे भी सुखद बात यह है कि खेलों में हमारी हिस्सेदारी और दावेदारी बढ़ी है. क्रिकेट के साथ बॉक्सिंग, रेसलिंग, बैडमिंटन, आर्चरी और निशानेबाजी में आज भारत का जलवा है. इसके अलावा दूसरे खेलों में भी इंडियन एथलीट पूरे दमखम के साथ अपनी छाप छोड़ रहे हैं.
यह यात्रा इतनी आसान नहीं रही है. तमाम दुश्वारियों और संघर्षों से भरी रही है. आपको पता ही होगा आजादी के समय देश की माली हालत क्या थी, इसलिए सरकार की प्राथमिकताओं में खेल दूर-दूर तक नहीं था. समाज का नजरिया भी 'खेलोगे-कूदोगे तो होगे खराब' तक सीमित था. ऐसे में हॉकी खेल की इकलौती विधा थी, जिसमें दुनिया भारत का नाम जानती थी. कारण आजादी से पहले भारतीय हॉकी टीम ओलिंपिक में तीन गोल्ड मेडल हासिल कर चुकी थी. आजादी के बाद भी हॉकी में भारत का रौब बना रहा और चार ओलिंपिक गोल्ड हमारे हिस्से आये. हालांकि, 1964 के तोक्यो ओलिंपिक के बाद सिर्फ 1980 के मॉस्को ओलिंपिक में ही इंडियन टीम 'गोल्ड' दाग सकी.
एक तरफ हॉकी में भारत का स्वर्णिम युग ढलान पर था, तो उसी वक्त क्रिकेट की दुनिया में भारत का सूरज अपनी उदयाचल लालिमा बिखेरने लगा था. वर्ष 1970-71 में अजित वाडेकर की टीम ने वेस्टइंडीज को उसके ही घर में ऐतिहासिक शिकस्त दी, लेकिन इंडियन टीम ने 1983 में क्रिकेट की मठाधीशी को सिर के बल खड़ा कर दिया. कपिलदेव की टीम ने वेस्टइंडीज की बादशाहत खत्म कर दी और इसी हैरतअंगेज कारनामे का नतीजा था कि क्रिकेट इंडिया के कोने-कोने तक पहुंचा.
सचिन, द्रविड़, गांगुली, कुंबले, सहवाग, युवराज, धोनी और कोहली जैसे आला खिलाड़ी मिलते गये और भारत क्रिकेट की महाशक्ति बना. इंडिया की झोली में दो वर्ल्ड कप और दो चैंपियंस ट्रॉफियां आ गयीं, जिससे क्रिकेट में इंडिया का भौकाल कायम हुआ. हालिया सालों में SENA देशों में भी इंडिया ने कुछ बेहद यादगार जीतें हासिल की. आइपीएल की आमद से देश-दुनिया में क्रिकेट का रोमांच और प्रसार कई गुणा बढ़ा है. चूंकि बात हॉकी से शुरू हुई थी, तो यह रेखांकित करना पड़ेगा कि इसमें भी भारत का प्रदर्शन काफी सुधरा है. तोक्यो ओलिंपिक में 41 साल के सूखे को समाप्त कर भारतीय टीम ने ब्रॉन्ज हासिल किया. हॉकी में महिला टीम ने भी उम्मीद बढ़ायी है, जिससे लगता है कि भारत हॉकी में पुराने गौरव को हासिल करने की ओर अग्रसर है.
इस तरह के शुभ संकेत बाकी खेलों से भी मिल रहे हैं. रेसलिंग में इंडियन एथलीट्स ने बड़ा मुकाम हासिल किया है. वर्ष 1952 के हेलिंस्की ओलिंपिक में केडी जाधव ने कांस्य जीतकर जो लौ जलायी थी, उसे ज्वाला बनने में लंबा अरसा लगा, मगर बीजिंग ओलिंपिक में कांसा और फिर लंदन में सिल्वर जीतकर सुशील कुमार ने जो सिलसिला शुरू किया, उसे योगेश्वर दत्त, साक्षी मलिक, रवि दहिया और बजरंग पूनिया ने जारी रखा. बीजिंग के बाद ऐसा कोई ओलिंपिक नहीं रहा, जहां भारत को रेसलिंग में मेडल नहीं मिला. आज हकीकत यह है कि भारतीय पहलवान हर टूर्नामेंट में पदक के तगड़े दावेदार होते हैं.
बीजिंग ओलिंपिक में बॉक्सिंग रिंग से भी गुड न्यूज आयी. विजेंदर सिंह ने अपने दमदार मुक्कों से भारत की झोली में ब्रॉन्ज डाला. 2012 के ओलिंपिक खेलों में मैरी कॉम ने कांस्य पर कब्जा जमाया और 2020 में लवलीना बोरगोहेन ने भी यह कारनामा दोहराया. इसके अलावा निखत जरीन ने पिछले साल वर्ल्ड बॉक्सिंग चैम्पियनशिप में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया. आज अमित पंघाल, दीपक कुमार, मोहम्मद हुसामुद्दीन और निशांत देव जैसे कई प्रॉमिसिंग बॉक्सर अंतरराष्ट्रीय फलक पर छाने को बेताब हैं.
बैडमिंटन एक ऐसा खेल है, जिसमें भारत ने अपनी मौजूदगी जबरदस्त तरीके से दर्ज कराते हुए चीन के दबदबे को चुनौती दी है. प्रकाश पादुकोण और गोपीचंद ने ऑल इंग्लैंड चैंपियनशिप से सफलता की जो दास्तान लिखी थी, उसमें सिंधु, सायना, श्रीकांत, लक्ष्य सेन और सात्विक-चिराग जैसे प्लेयर्स ने नये अध्याय जोड़े. ओलिंपिक से लेकर थॉमस कप, विश्व चैंपियनशिप और कॉमनवेल्थ गेम्स में इंडियन प्लेयर्स ने अपना विजयी अभियान जारी रखा है.
इस सदी में भारतीय निशानेबाजों ने भी अपना कमाल दिखाया है. 2004 के एथेंस ओलंपिक में राजवर्धन राठौड़ ने रजत जीतकर इस अभियान का आगाज किया. इसके चार बरस बाद 'बिंद्रा' ने ओलिंपिक गोल्ड पर निशाना लगाकर 'अभिनव' इतिहास रच दिया. लंदन ओलिंपिक में विजय कुमार और गगन नारंग भी मेडल दिलाने में सफल रहे. शूटिंग के साथ ही तीरंदाजी में भी भारत ने सफलता के दरवाजे खोले हैं. दीपिका कुमारी और अतनु दास ने अपने असाधारण प्रदर्शन से इस खेल में भारत का मान बढ़ाया है. अभी पिछले दिनों ही भारत की विमेंस कंपाउंड टीम ने पहली बार वर्ल्ड आर्चरी चैंपियनशिप जीती है. तीरंदाजों की नयी पौध भरोसा जगाती हैं कि आर्चरी का ओलिंपिक मेडल भी ज्यादा दूर नहीं है.
आज एथलेटिक्स में भी इंडिया की पहचान सुपर पावर के तौर पर होने लगी है. इसके लिए सबसे ज्यादा श्रेय 'गोल्डन बॉय' नीरज चोपड़ा को जाता है. तोक्यो में स्वर्ण जीतने के बाद वर्ल्ड चैंपियनशिप और डायमंड लीग में भी वह लगातार अपना परचम लहरा रहे हैं. उनके अलावा डीपी मनु, अन्नू रानी और जेना किशोर जैसे खिलाड़ी जैवलिन थ्रो में अपना लोहा मनवाने के लिए पूरी तरह तैयार हैं. वेटलिफ्टिंग में मीराबाई चानू के ओलिंपिक सिल्वर ने फिर से आस जगायी है. जेरेमी लालरिनुंगा, अचिंता शेउली जैसे युवा खिलाड़ी भारोत्तोलन में इंडिया के भविष्य बताये जा रहे हैं और आने वाले ओलिंपिक एवं एशियन गेम्स में भी इनसे अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद रहेगी.
कुल मिलाकर देखा जाये तो यह भारतीय खेलों के स्वर्ण युग की शुरुआत है. कई खेल ऐसे हैं जहां वर्ल्ड क्लास प्रतिभाओं की भरमार है. वहीं, फुटबॉल, टेनिस, टेबल टेनिस और शतरंज जैसे कुछ खेल ऐसे भी हैं, जहां अब भी कई बाइचुंग भूटिया और सुनील छेत्री, सानिया मिर्जा और पेस-भूपति, शरत कमल और मनिका बत्रा, विश्वनाथन आनंद और डी गुकेश की जरूरत है. साथ ही ढेर सारे मिल्खा सिंह और पीटी उषा की भी देश को तलाश है. अच्छी बात यह है कि सरकारों ने भी खेल और खिलाड़ियों पर विशेष ध्यान देना शुरू किया है. मौजूदा वित्त वर्ष में युवा मामलों और खेल मंत्रालय का बजट भी बढ़ाकर चौंतीस सौ करोड़ कर दिया गया है. स्पोर्ट्स इंफ्रास्ट्रक्चर और खिलाड़ियों की कोचिंग-ट्रेनिंग का भी ख़ास ख़याल रखा जा रहा है. बड़ी आबादी के चलते भारत में खेलों को लेकर अपार संभावनाएं हैं और 'खेलो इंडिया' जैसे अभियान से इन संभावनाओं को पुष्ट करने का काम चल रहा है. खेलों को लेकर समाज का संकीर्ण नजरिया भी बदला है. चीज़ें इसी तरह सही दिशा में बढ़ती रहीं तो आजादी के सौ साल का जश्न मनाता भारत खेल जगत में सुपर पावर के तौर पर स्थापित हो चुका होगा.
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यह यात्रा इतनी आसान नहीं रही है. तमाम दुश्वारियों और संघर्षों से भरी रही है. आपको पता ही होगा आजादी के समय देश की माली हालत क्या थी, इसलिए सरकार की प्राथमिकताओं में खेल दूर-दूर तक नहीं था. समाज का नजरिया भी 'खेलोगे-कूदोगे तो होगे खराब' तक सीमित था. ऐसे में हॉकी खेल की इकलौती विधा थी, जिसमें दुनिया भारत का नाम जानती थी. कारण आजादी से पहले भारतीय हॉकी टीम ओलिंपिक में तीन गोल्ड मेडल हासिल कर चुकी थी. आजादी के बाद भी हॉकी में भारत का रौब बना रहा और चार ओलिंपिक गोल्ड हमारे हिस्से आये. हालांकि, 1964 के तोक्यो ओलिंपिक के बाद सिर्फ 1980 के मॉस्को ओलिंपिक में ही इंडियन टीम 'गोल्ड' दाग सकी.
एक तरफ हॉकी में भारत का स्वर्णिम युग ढलान पर था, तो उसी वक्त क्रिकेट की दुनिया में भारत का सूरज अपनी उदयाचल लालिमा बिखेरने लगा था. वर्ष 1970-71 में अजित वाडेकर की टीम ने वेस्टइंडीज को उसके ही घर में ऐतिहासिक शिकस्त दी, लेकिन इंडियन टीम ने 1983 में क्रिकेट की मठाधीशी को सिर के बल खड़ा कर दिया. कपिलदेव की टीम ने वेस्टइंडीज की बादशाहत खत्म कर दी और इसी हैरतअंगेज कारनामे का नतीजा था कि क्रिकेट इंडिया के कोने-कोने तक पहुंचा.
सचिन, द्रविड़, गांगुली, कुंबले, सहवाग, युवराज, धोनी और कोहली जैसे आला खिलाड़ी मिलते गये और भारत क्रिकेट की महाशक्ति बना. इंडिया की झोली में दो वर्ल्ड कप और दो चैंपियंस ट्रॉफियां आ गयीं, जिससे क्रिकेट में इंडिया का भौकाल कायम हुआ. हालिया सालों में SENA देशों में भी इंडिया ने कुछ बेहद यादगार जीतें हासिल की. आइपीएल की आमद से देश-दुनिया में क्रिकेट का रोमांच और प्रसार कई गुणा बढ़ा है. चूंकि बात हॉकी से शुरू हुई थी, तो यह रेखांकित करना पड़ेगा कि इसमें भी भारत का प्रदर्शन काफी सुधरा है. तोक्यो ओलिंपिक में 41 साल के सूखे को समाप्त कर भारतीय टीम ने ब्रॉन्ज हासिल किया. हॉकी में महिला टीम ने भी उम्मीद बढ़ायी है, जिससे लगता है कि भारत हॉकी में पुराने गौरव को हासिल करने की ओर अग्रसर है.
इस तरह के शुभ संकेत बाकी खेलों से भी मिल रहे हैं. रेसलिंग में इंडियन एथलीट्स ने बड़ा मुकाम हासिल किया है. वर्ष 1952 के हेलिंस्की ओलिंपिक में केडी जाधव ने कांस्य जीतकर जो लौ जलायी थी, उसे ज्वाला बनने में लंबा अरसा लगा, मगर बीजिंग ओलिंपिक में कांसा और फिर लंदन में सिल्वर जीतकर सुशील कुमार ने जो सिलसिला शुरू किया, उसे योगेश्वर दत्त, साक्षी मलिक, रवि दहिया और बजरंग पूनिया ने जारी रखा. बीजिंग के बाद ऐसा कोई ओलिंपिक नहीं रहा, जहां भारत को रेसलिंग में मेडल नहीं मिला. आज हकीकत यह है कि भारतीय पहलवान हर टूर्नामेंट में पदक के तगड़े दावेदार होते हैं.
बीजिंग ओलिंपिक में बॉक्सिंग रिंग से भी गुड न्यूज आयी. विजेंदर सिंह ने अपने दमदार मुक्कों से भारत की झोली में ब्रॉन्ज डाला. 2012 के ओलिंपिक खेलों में मैरी कॉम ने कांस्य पर कब्जा जमाया और 2020 में लवलीना बोरगोहेन ने भी यह कारनामा दोहराया. इसके अलावा निखत जरीन ने पिछले साल वर्ल्ड बॉक्सिंग चैम्पियनशिप में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया. आज अमित पंघाल, दीपक कुमार, मोहम्मद हुसामुद्दीन और निशांत देव जैसे कई प्रॉमिसिंग बॉक्सर अंतरराष्ट्रीय फलक पर छाने को बेताब हैं.
बैडमिंटन एक ऐसा खेल है, जिसमें भारत ने अपनी मौजूदगी जबरदस्त तरीके से दर्ज कराते हुए चीन के दबदबे को चुनौती दी है. प्रकाश पादुकोण और गोपीचंद ने ऑल इंग्लैंड चैंपियनशिप से सफलता की जो दास्तान लिखी थी, उसमें सिंधु, सायना, श्रीकांत, लक्ष्य सेन और सात्विक-चिराग जैसे प्लेयर्स ने नये अध्याय जोड़े. ओलिंपिक से लेकर थॉमस कप, विश्व चैंपियनशिप और कॉमनवेल्थ गेम्स में इंडियन प्लेयर्स ने अपना विजयी अभियान जारी रखा है.
इस सदी में भारतीय निशानेबाजों ने भी अपना कमाल दिखाया है. 2004 के एथेंस ओलंपिक में राजवर्धन राठौड़ ने रजत जीतकर इस अभियान का आगाज किया. इसके चार बरस बाद 'बिंद्रा' ने ओलिंपिक गोल्ड पर निशाना लगाकर 'अभिनव' इतिहास रच दिया. लंदन ओलिंपिक में विजय कुमार और गगन नारंग भी मेडल दिलाने में सफल रहे. शूटिंग के साथ ही तीरंदाजी में भी भारत ने सफलता के दरवाजे खोले हैं. दीपिका कुमारी और अतनु दास ने अपने असाधारण प्रदर्शन से इस खेल में भारत का मान बढ़ाया है. अभी पिछले दिनों ही भारत की विमेंस कंपाउंड टीम ने पहली बार वर्ल्ड आर्चरी चैंपियनशिप जीती है. तीरंदाजों की नयी पौध भरोसा जगाती हैं कि आर्चरी का ओलिंपिक मेडल भी ज्यादा दूर नहीं है.
आज एथलेटिक्स में भी इंडिया की पहचान सुपर पावर के तौर पर होने लगी है. इसके लिए सबसे ज्यादा श्रेय 'गोल्डन बॉय' नीरज चोपड़ा को जाता है. तोक्यो में स्वर्ण जीतने के बाद वर्ल्ड चैंपियनशिप और डायमंड लीग में भी वह लगातार अपना परचम लहरा रहे हैं. उनके अलावा डीपी मनु, अन्नू रानी और जेना किशोर जैसे खिलाड़ी जैवलिन थ्रो में अपना लोहा मनवाने के लिए पूरी तरह तैयार हैं. वेटलिफ्टिंग में मीराबाई चानू के ओलिंपिक सिल्वर ने फिर से आस जगायी है. जेरेमी लालरिनुंगा, अचिंता शेउली जैसे युवा खिलाड़ी भारोत्तोलन में इंडिया के भविष्य बताये जा रहे हैं और आने वाले ओलिंपिक एवं एशियन गेम्स में भी इनसे अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद रहेगी.
कुल मिलाकर देखा जाये तो यह भारतीय खेलों के स्वर्ण युग की शुरुआत है. कई खेल ऐसे हैं जहां वर्ल्ड क्लास प्रतिभाओं की भरमार है. वहीं, फुटबॉल, टेनिस, टेबल टेनिस और शतरंज जैसे कुछ खेल ऐसे भी हैं, जहां अब भी कई बाइचुंग भूटिया और सुनील छेत्री, सानिया मिर्जा और पेस-भूपति, शरत कमल और मनिका बत्रा, विश्वनाथन आनंद और डी गुकेश की जरूरत है. साथ ही ढेर सारे मिल्खा सिंह और पीटी उषा की भी देश को तलाश है. अच्छी बात यह है कि सरकारों ने भी खेल और खिलाड़ियों पर विशेष ध्यान देना शुरू किया है. मौजूदा वित्त वर्ष में युवा मामलों और खेल मंत्रालय का बजट भी बढ़ाकर चौंतीस सौ करोड़ कर दिया गया है. स्पोर्ट्स इंफ्रास्ट्रक्चर और खिलाड़ियों की कोचिंग-ट्रेनिंग का भी ख़ास ख़याल रखा जा रहा है. बड़ी आबादी के चलते भारत में खेलों को लेकर अपार संभावनाएं हैं और 'खेलो इंडिया' जैसे अभियान से इन संभावनाओं को पुष्ट करने का काम चल रहा है. खेलों को लेकर समाज का संकीर्ण नजरिया भी बदला है. चीज़ें इसी तरह सही दिशा में बढ़ती रहीं तो आजादी के सौ साल का जश्न मनाता भारत खेल जगत में सुपर पावर के तौर पर स्थापित हो चुका होगा.
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यह यात्रा इतनी आसान नहीं रही है. तमाम दुश्वारियों और संघर्षों से भरी रही है. आपको पता ही होगा आजादी के समय देश की माली हालत क्या थी, इसलिए सरकार की प्राथमिकताओं में खेल दूर-दूर तक नहीं था. समाज का नजरिया भी 'खेलोगे-कूदोगे तो होगे खराब' तक सीमित था. ऐसे में हॉकी खेल की इकलौती विधा थी, जिसमें दुनिया भारत का नाम जानती थी. कारण आजादी से पहले भारतीय हॉकी टीम ओलिंपिक में तीन गोल्ड मेडल हासिल कर चुकी थी. आजादी के बाद भी हॉकी में भारत का रौब बना रहा और चार ओलिंपिक गोल्ड हमारे हिस्से आये. हालांकि, 1964 के तोक्यो ओलिंपिक के बाद सिर्फ 1980 के मॉस्को ओलिंपिक में ही इंडियन टीम 'गोल्ड' दाग सकी.
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सचिन, द्रविड़, गांगुली, कुंबले, सहवाग, युवराज, धोनी और कोहली जैसे आला खिलाड़ी मिलते गये और भारत क्रिकेट की महाशक्ति बना. इंडिया की झोली में दो वर्ल्ड कप और दो चैंपियंस ट्रॉफियां आ गयीं, जिससे क्रिकेट में इंडिया का भौकाल कायम हुआ. हालिया सालों में SENA देशों में भी इंडिया ने कुछ बेहद यादगार जीतें हासिल की. आइपीएल की आमद से देश-दुनिया में क्रिकेट का रोमांच और प्रसार कई गुणा बढ़ा है. चूंकि बात हॉकी से शुरू हुई थी, तो यह रेखांकित करना पड़ेगा कि इसमें भी भारत का प्रदर्शन काफी सुधरा है. तोक्यो ओलिंपिक में 41 साल के सूखे को समाप्त कर भारतीय टीम ने ब्रॉन्ज हासिल किया. हॉकी में महिला टीम ने भी उम्मीद बढ़ायी है, जिससे लगता है कि भारत हॉकी में पुराने गौरव को हासिल करने की ओर अग्रसर है.
इस तरह के शुभ संकेत बाकी खेलों से भी मिल रहे हैं. रेसलिंग में इंडियन एथलीट्स ने बड़ा मुकाम हासिल किया है. वर्ष 1952 के हेलिंस्की ओलिंपिक में केडी जाधव ने कांस्य जीतकर जो लौ जलायी थी, उसे ज्वाला बनने में लंबा अरसा लगा, मगर बीजिंग ओलिंपिक में कांसा और फिर लंदन में सिल्वर जीतकर सुशील कुमार ने जो सिलसिला शुरू किया, उसे योगेश्वर दत्त, साक्षी मलिक, रवि दहिया और बजरंग पूनिया ने जारी रखा. बीजिंग के बाद ऐसा कोई ओलिंपिक नहीं रहा, जहां भारत को रेसलिंग में मेडल नहीं मिला. आज हकीकत यह है कि भारतीय पहलवान हर टूर्नामेंट में पदक के तगड़े दावेदार होते हैं.
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इस सदी में भारतीय निशानेबाजों ने भी अपना कमाल दिखाया है. 2004 के एथेंस ओलंपिक में राजवर्धन राठौड़ ने रजत जीतकर इस अभियान का आगाज किया. इसके चार बरस बाद 'बिंद्रा' ने ओलिंपिक गोल्ड पर निशाना लगाकर 'अभिनव' इतिहास रच दिया. लंदन ओलिंपिक में विजय कुमार और गगन नारंग भी मेडल दिलाने में सफल रहे. शूटिंग के साथ ही तीरंदाजी में भी भारत ने सफलता के दरवाजे खोले हैं. दीपिका कुमारी और अतनु दास ने अपने असाधारण प्रदर्शन से इस खेल में भारत का मान बढ़ाया है. अभी पिछले दिनों ही भारत की विमेंस कंपाउंड टीम ने पहली बार वर्ल्ड आर्चरी चैंपियनशिप जीती है. तीरंदाजों की नयी पौध भरोसा जगाती हैं कि आर्चरी का ओलिंपिक मेडल भी ज्यादा दूर नहीं है.
आज एथलेटिक्स में भी इंडिया की पहचान सुपर पावर के तौर पर होने लगी है. इसके लिए सबसे ज्यादा श्रेय 'गोल्डन बॉय' नीरज चोपड़ा को जाता है. तोक्यो में स्वर्ण जीतने के बाद वर्ल्ड चैंपियनशिप और डायमंड लीग में भी वह लगातार अपना परचम लहरा रहे हैं. उनके अलावा डीपी मनु, अन्नू रानी और जेना किशोर जैसे खिलाड़ी जैवलिन थ्रो में अपना लोहा मनवाने के लिए पूरी तरह तैयार हैं. वेटलिफ्टिंग में मीराबाई चानू के ओलिंपिक सिल्वर ने फिर से आस जगायी है. जेरेमी लालरिनुंगा, अचिंता शेउली जैसे युवा खिलाड़ी भारोत्तोलन में इंडिया के भविष्य बताये जा रहे हैं और आने वाले ओलिंपिक एवं एशियन गेम्स में भी इनसे अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद रहेगी.
कुल मिलाकर देखा जाये तो यह भारतीय खेलों के स्वर्ण युग की शुरुआत है. कई खेल ऐसे हैं जहां वर्ल्ड क्लास प्रतिभाओं की भरमार है. वहीं, फुटबॉल, टेनिस, टेबल टेनिस और शतरंज जैसे कुछ खेल ऐसे भी हैं, जहां अब भी कई बाइचुंग भूटिया और सुनील छेत्री, सानिया मिर्जा और पेस-भूपति, शरत कमल और मनिका बत्रा, विश्वनाथन आनंद और डी गुकेश की जरूरत है. साथ ही ढेर सारे मिल्खा सिंह और पीटी उषा की भी देश को तलाश है. अच्छी बात यह है कि सरकारों ने भी खेल और खिलाड़ियों पर विशेष ध्यान देना शुरू किया है. मौजूदा वित्त वर्ष में युवा मामलों और खेल मंत्रालय का बजट भी बढ़ाकर चौंतीस सौ करोड़ कर दिया गया है. स्पोर्ट्स इंफ्रास्ट्रक्चर और खिलाड़ियों की कोचिंग-ट्रेनिंग का भी ख़ास ख़याल रखा जा रहा है. बड़ी आबादी के चलते भारत में खेलों को लेकर अपार संभावनाएं हैं और 'खेलो इंडिया' जैसे अभियान से इन संभावनाओं को पुष्ट करने का काम चल रहा है. खेलों को लेकर समाज का संकीर्ण नजरिया भी बदला है. चीज़ें इसी तरह सही दिशा में बढ़ती रहीं तो आजादी के सौ साल का जश्न मनाता भारत खेल जगत में सुपर पावर के तौर पर स्थापित हो चुका होगा.
[post_title] => Azadi Ka Amrit Mahotsav: हो चुकी है भारतीय खेलों के स्वर्ण युग की शुरुआत [post_excerpt] => एक तरफ हॉकी में भारत का स्वर्णिम युग ढलान पर था, तो उसी वक्त क्रिकेट की दुनिया में भारत का सूरज अपनी उदयाचल लालिमा बिखेरने लगा था. वर्ष 1970-71 में अजित वाडेकर की टीम ने वेस्टइंडीज को उसके ही घर में ऐतिहासिक शिकस्त दी, लेकिन इंडियन टीम ने 1983 में क्रिकेट की मठाधीशी को सिर के बल खड़ा कर दिया. [post_status] => publish [comment_status] => open [ping_status] => open [post_password] => [post_name] => happy-independence-day-golden-era-of-indian-sports-has-begun-mtj [to_ping] => [pinged] => [post_modified] => 2023-08-15 01:00:00 [post_modified_gmt] => 2023-08-14 19:30:00 [post_content_filtered] => [post_parent] => 0 [guid] => https://pkwp.prabhatkhabar.com/archive/happy-independence-day-golden-era-of-indian-sports-has-begun-mtj [menu_order] => 0 [post_type] => post [post_mime_type] => [comment_count] => 0 [filter] => raw [filter_widget] => ) [comment_count] => 0 [current_comment] => -1 [found_posts] => 0 [max_num_pages] => 0 [max_num_comment_pages] => 0 [is_single] => 1 [is_preview] => [is_page] => [is_archive] => [is_date] => [is_year] => [is_month] => [is_day] => [is_time] => [is_author] => [is_category] => [is_tag] => [is_tax] => [is_search] => [is_feed] => [is_comment_feed] => [is_trackback] => [is_home] => [is_privacy_policy] => [is_404] => [is_embed] => [is_paged] => [is_admin] => [is_attachment] => [is_singular] => 1 [is_robots] => [is_favicon] => [is_posts_page] => [is_post_type_archive] => [query_vars_hash:WP_Query:private] => 7ddfa3af28b46cb305e4559cc5a552d8 [query_vars_changed:WP_Query:private] => 1 [thumbnails_cached] => [allow_query_attachment_by_filename:protected] => [stopwords:WP_Query:private] => [compat_fields:WP_Query:private] => Array ( [0] => query_vars_hash [1] => query_vars_changed ) [compat_methods:WP_Query:private] => Array ( [0] => init_query_flags [1] => parse_tax_query ) ) [post_theme_settings_meta:tdb_state_single:private] => [post_video_meta:tdb_state_single:private] => [post_audio_meta:tdb_state_single:private] => [post_user_review:tdb_state_single:private] => ) [parameter] => Array ( [$atts] =>