ऑटिज्म पीड़ित बच्चे की मां के मन की बात, जानिए कैसे आगे बढ़ रहा है उनका लाडला शुभ्रांशु

मैं (इतु बोस) अपने पति सुचरित बोस (एयरफोर्स में कार्यरत) के साथ वर्ष 2001 में दार्जिलिंग में थीं. पहली संतान के रूप में शुभ्रांशु के जन्म लेने के कारण घर में काफी खुशी का माहौल था. मेरा बेटा लगभग दो साल का हो गया और ऐसा लग रहा था कि बेटे में सीखने की रफ्तार […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 1, 2017 1:18 PM
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उसी दौरान हम अपने नजदीकी रिश्तेदार के घर गये थे. वहां रिश्तेदार ने कहा कि क्या आपको नहीं लगता कि आपके बच्चे को प्रॉब्लम है, लेकिन उनका लहजा थोड़ा अपमानित करनेवाला था. हमलोगों ने तत्काल उसका प्रतिरोध किया और कहा कि ऐसा कुछ भी नहीं है. हमारा बेटा मैग्गी पसंद करता है, पहचानता है. मां-बाबा बोलता है. हां, थोड़ा ज्यादा चंचल जरूर है और बच्चे को तो चंचल होना ही चाहिए. उन्होंने कहा कि आज भले ही आपको मेरी बात अच्छी नहीं लग रही है, लेकिन एक महीने के अंदर आप लोगों को अपने बच्चे को दिखलाने मेंटल हॉस्पिटल जाना होगा. मुझे ऐसा लगा कि जैसे मैं उसी वक्त चौदहवीं मंजिल से कूद जाऊं.

इसके बाद मैं अपने पति के साथ दिल्ली में जसोला हॉस्पिटल में डॉक्टर्स के पास गयी. वहां पता चला कि मेरे शुभ्रांशु को ऑटिज्म है और ऐसे बच्चे मेंटली चैलेंज्ड होते हैं. डॉक्टर्स ने ऑटिज्म से ग्रसित बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास की परेशानियों से भी अवगत कराया. आगे इसकी कैसे परवरिश करनी है, इसके भी कुछ टिप्स दिये, लेकिन हमें तो ऑटिज्म के बारे में कुछ भी नहीं पता था और मन में विचार आ रहा था कि मेरा बच्चा ऐसा कैसे हो सकता है. कुछ दिनों तक पूरा परिवार सदमे में था, लेकिन धीरे-धीरे हमलोगों ने स्वीकार कर लिया कि सचमुच हमारे बेटे को लाइलाज बीमारी है और संकल्प लिया कि किसी भी तरह शुभ्रांशु के जीवन को बेहतर बनायेंगे. इंसान मूक जानवर को सीखा सकता है, तो फिर शुभ्रांशु तो हमारा खून है.
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