Bihar Politics: पौने 2 करोड़ अतिपिछड़ों की सियासी आवाज गुम, राजनीतिक गहमागहमी में न कोई नामलेवा न कोई पैरोकार

Bihar Politics: बिहार में पौने 2 करोड़ अतिपिछड़ों की सियासी आवाज़ आज भी गुम है. राजनीतिक दलों की निगाहें तीन से दो फीसदी के आसपास की आबादी वाली अतिपिछड़ी जातियों पर ही हैं. इन जातियों की संख्या 12 से 14 के आसपास है.

By Manoj Kumar | July 8, 2025 2:54 PM
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मनोज कुमार/ Bihar Politics: बिहार में अतिपिछड़ी जातियों का वोट पाने के लिए सियासी दांव-पेंच चलने शुरू हो गये हैं. तमाम राजनीतिक पार्टियां अधिक से अधिक अतिपिछड़ी जातियों का वोट पाने के लिए जुगत भिड़ा रही हैं. अतिपिछड़ी जातियों के सम्मेलन आयोजित कराये जा रहे हैं. इन सम्मेलनों में राजनीतिक दलों के बड़े चेहरे पहुंच रहे हैं. मगर, अतिपिछड़ी जातियों की राजनीति में 12 से 14 जातियों का ही बोलबाला है. राजनीति के केंद्र में तेली, मल्लाह, प्रजापति, कानू, धानुक, नोनिया, चंद्रवंशी, नाई, बढ़ई, मुस्लिम में जुलाहा अंसारी, राइन या कुंजरा, दांगी और थोड़ी बहुत माली जाति पर केंद्रित राजनीति ही चर्चा में है.

112 जातियों में से अधिकांश का नाम गुम

जातीय गणना के अनुसार इन सभी जातियों की आबादी 2 करोड़ 94 लाख 63 हजार 536 है, जबकि जातीय गणना के अनुसार ही बिहार में अतिपिछड़ों की कुल आबादी 4 करोड़ 70 लाख 80 हजार 514 है. इस हिसाब से बिहार की सियासत में अभी इन जातियों को छोड़कर शेष बची 1 करोड़ 76 लाख 16 हजार 978 अतिपिछड़ी जातियां राजनीतिक परिदृश्य से लगभग बाहर हैं. राज्य में कुल 112 अतिपिछड़ी जाति चिह्नित किये गये हैं. अगर इन 14 जातियों को छोड़ दें तो 98 जातियों में से अधिकांश का राजनेता नाम भी नहीं जानते होंगे. इन जातियों के नुमाइंदे भी न के बराबर दिखते हैं.

तीन से दो फीसदी आबादी वाली अतिपिछड़ी जातियों पर राजनीतिक दलों की निगाहें

राजनीतिक दलों की निगाहें तीन से दो फीसदी के आसपास की आबादी वाली अतिपिछड़ी जातियों पर ही हैं. इन जातियों की संख्या 12 से 14 के आसपास है. इनके नुमाइंदे भी सियासी गलियारों में मिलते हैं. विधानसभा में टिकट राजनीतिक दल इन्हीं जातियों में से देते हैं. विधान परिषद और राज्यसभा में भी इन्हीं जातियों से भेजे जाते रहे हैं. जानकार बताते हैं कि इन 12 से 14 जातियों के अपने सामाजिक संगठन हैं. जबकि शेष 98 जातियों का सामाजिक संगठन है भी तो काफी बिखरा और क्षेत्रीय स्तर पर है. इस कारण राजनीतिक दल सांगठनिक और बड़ी आबादी वाली अतिपिछड़ी जातियों को ही साधने में जुटे रहते हैं.

राजनेताओं की जुबान पर नहीं सुने होंगे इन जातियों के नाम, नाम सुनकर सभी चौंक जायेंगे

गोड़ी, राजवंशी, अमात, केवर्त, सेखड़ा, तियर, सिंदूरिया बनिया, नागर, लहेड़ी, पैरघा, देवहार, अवध बनिया बक्खो, अदरखी, नामशुद्र, चपोता, मोरियारी, कोछ, खंगर, वनपर, सोयर, सैकलगर, कादर, तिली, टिकुलहार, अबदल, ईटफरोश, अघोरी, कलंदर, भार, सामरी वैश्य, खटवा, गंधर्व, जागा, कपरिया, धामिन, पांडी, रंगवा, बागदी, मझवार, मलार, भुईयार, धनवार, प्रधान, मौलिक, मांगर, धीमर, छीपी, मदार, पिनगनिया, संतराश, खेलटा, पहिरा, ढेकारू, सौटा, कोरक, भास्कर, मारकंडे, नागर. ये सभी अतिपिछड़ी जाति में आते हैं. मगर, इन जातियों के नाम शायद ही राजनेताओं के मुंह से सुने गये होंगे. यहां तक कि इन जातियों का नाम सुनकर सभी चौंक जायेंगे. क्योंकि अधिकांश ने शायद ही इनका नाम सुना हो. बहुत संभव है कि इन जातियों को क्षेत्रीय स्तर पर किसी और नाम से पुकारा जाता हो, मगर राज्य स्तर पर अधिकांश के बीच ये जातियां गुमनाम हैं.

अति पिछड़ी जाति की आबादी का आंकड़ा

जातिप्रतिशत
तेली2.81 फीसदी
मल्लाह2.6086
कानू2.2129
धानुक2.2129
नोनिया1.91
चंद्रवंशी1.64
नाई1.5927
बढ़ई1.45
मोमिन- जुलाहा-अंसारी 3.54
धुनिया1.42
प्रजापति1.40
राइन- कुंजरा1.39
माली0.2672
दांगी0.2575

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