Bihar Politics: बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारियों के बीच जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के भीतर से एक नई राजनीतिक मांग ने जोर पकड़ लिया है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पुत्र निशांत कुमार को सक्रिय राजनीति में लाने और आगामी विधानसभा चुनाव लड़वाने की मांग पार्टी कार्यकर्ताओं ने खुलकर उठाई है. पटना की सड़कों पर लगे बड़े-बड़े पोस्टरों में यह संदेश साफ देखा जा सकता है- “कार्यकर्ताओं की मांग, चुनाव लड़ें निशांत.”
पोस्टरों में निशांत को बताया गया ‘नेतृत्व का उत्तराधिकारी’
पटना स्थित जदयू कार्यालय के बाहर और प्रमुख इलाकों में शनिवार को कई पोस्टर लगाए गए, जिनमें निशांत कुमार और नीतीश कुमार की तस्वीरें प्रमुखता से दिखाई दे रही हैं. इन पोस्टरों में जदयू कार्यकर्ता सुशील कुमार सुनी, वरुण कुमार, अभय पटेल और चंदन पटेल निवेदक के रूप में दर्ज हैं. ये कार्यकर्ता साफ कह रहे हैं कि अब वक्त आ गया है कि निशांत कुमार सक्रिय राजनीति में आएं और बिहार की राजनीति में अपनी भूमिका तय करें.
कार्यकर्ताओं ने कहा, “जिस तरह उनके पिता नीतीश कुमार ने बिहार को नई दिशा दी, वैसा ही नेतृत्व अब निशांत जी से भी अपेक्षित है. वे पढ़े-लिखे, सुलझे और दूरदर्शी व्यक्ति हैं. पार्टी और युवा कार्यकर्ता चाहते हैं कि वे चुनाव लड़ें और संगठन की कमान संभालें.”
दूसरी बार उठी मांग, पार्टी में हलचल
गौरतलब है कि एक हफ्ते के भीतर यह दूसरी बार है जब निशांत कुमार को राजनीति में लाने की मांग जोर-शोर से उठी है. इससे पहले भी कुछ कार्यकर्ताओं और नेताओं ने सार्वजनिक मंचों से यह मुद्दा उठाया था, जिसे अब पोस्टरों के माध्यम से और मुखर किया गया है. पार्टी के एक वर्ग का मानना है कि यदि निशांत राजनीति में आते हैं, तो यह जदयू के लिए “नए युग की शुरुआत” होगी.
कुशवाहा और गोपाल मंडल ने भी दिए थे संकेत
बीते 20 जुलाई को रालोसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने भी इस मुद्दे पर बयान देते हुए कहा था, “निशांत से हमें काफी उम्मीदें हैं. नीतीश कुमार को संगठन की कमान अब किसी और को देनी चाहिए और खुद बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में विकास के एजेंडे पर काम करते रहना चाहिए.”
वहीं, जदयू के फायरब्रांड विधायक गोपाल मंडल पहले ही चेतावनी दे चुके हैं कि “अगर निशांत राजनीति में नहीं आए तो पार्टी में भगदड़ मच सकती है.” यह बयान राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन चुका है.
निशांत और नीतीश की चुप्पी बनी रहस्य
इन तमाम बयानों और पोस्टरबाजी के बावजूद अब तक न तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और न ही निशांत कुमार ने इस मुद्दे पर कोई सार्वजनिक प्रतिक्रिया दी है. निशांत कुमार को लेकर यह भी कहा जाता रहा है कि वे राजनीति से दूरी बनाकर रखते हैं और सार्वजनिक मंचों से दूर रहना पसंद करते हैं. हालांकि, बदलते सियासी समीकरण और जदयू कार्यकर्ताओं की लगातार उठती मांग ने अब उनकी संभावित एंट्री को चर्चा का केंद्र बना दिया है.
पार्टी में उत्तराधिकार की सुगबुगाहट?
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो यह घटनाक्रम सिर्फ चुनाव लड़वाने की मांग नहीं, बल्कि पार्टी के भविष्य के नेतृत्व को लेकर हो रही सुगबुगाहट का संकेत भी है. जिस तरह लालू प्रसाद यादव ने अपने बेटे तेजस्वी यादव को राजनीति में उतारा, उसी तरह नीतीश कुमार पर भी अब अपने उत्तराधिकारी को सामने लाने का दबाव बढ़ता दिख रहा है.
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