भाजपा का गढ़ रहा है चनपटिया
चनपटिया सीट को अब तक एनडीए और विशेषकर भाजपा का मजबूत गढ़ माना जाता रहा है. यहां पार्टी की पकड़ जातीय समीकरणों और विकास के मुद्दों के आधार पर मजबूत रही है, लेकिन मनीष कश्यप के जन समर्थन और जन सुराज की मौजूदा जमीनी रणनीति ने मुकाबले को रोचक बना दिया है. चनपटिया सीट पर पिछले 25 वर्षों से भाजपा का कब्जा रहा है. चनपटिया सीट पर 2020 भाजपा के उम्मीदवार उमाकांत सिंह भारी मतों से जीते थे. उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी अभिषेक रंजन को हराया था. जातीय समीकरण की बात करे तो भूमिहार- ब्राह्मण, राजपूत समुदाय पर भाजपा की परंपरागत पकड़ है. यादव, दलित और मुस्लिम वोटर्स पर राजद और कांग्रेस की पकड़ है. अगर जन सुराज इन वर्गों को एक साझा मंच पर लाने में सफल रही, तो चनपटिया में मुकाबला बहुकोणीय और कड़ा हो सकता है.
कांग्रेस से भाजपा में आयी चनपटिया विधानसभा सीट
बिहार की चनपटिया विधानसभा सीट का राजनीतिक इतिहास काफी दिलचस्प और बदलावों से भरा रहा है. यह सीट पहले बेतिया लोकसभा क्षेत्र के तहत आती थी, लेकिन 2008 में परिसीमन आयोग की सिफारिशों के बाद इसे पश्चिमी चंपारण संसदीय क्षेत्र में शामिल कर लिया गया. चनपटिया में विधानसभा चुनावों की शुरुआत 1957 से हुई थी. पहले चुनाव में कांग्रेस की केतकी देवी ने जीत दर्ज की. इसके बाद कांग्रेस के प्रमोद मिश्रा ने 1962 और 1967 में लगातार दो बार इस सीट पर जीत हासिल की, जिससे यह सीट कांग्रेस का मजबूत गढ़ बन गई थी. 1980, 1985 और 1995 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) ने इस सीट पर कब्जा जमाया. 2000 से भाजपा ने इस सीट पर कब्जा किया, जो अब तक थमा नहीं है. भाजपा ने यहां से लगातार 5 बार जीत दर्ज की है.
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