क्या है राजनीतिक इतिहास ?
डुमरांव विधानसभा सीट का राजनीतिक इतिहास बेहद विविध और गतिशील रहा है. 1951 में यहां से पहला चुनाव कांग्रेस के हरिहर प्रसाद सिंह ने जीता था, इसके बाद 1957 और 1972 में भी कांग्रेस का वर्चस्व रहा. 1977 में वामपंथी पार्टी CPI ने रामाश्रय सिंह के नेतृत्व में जीत दर्ज की. 1980 और 1981 में कांग्रेस ने वापसी की, जबकि 1990 के बाद ददन यादव (ददन पहलवान) का क्षेत्र में दबदबा रहा. उन्होंने अलग-अलग दलों से चुनाव जीतते हुए लंबे समय तक डुमरांव पर राजनीतिक पकड़ बनाए रखी. 2010 और 2015 में जेडीयू ने सीट पर कब्जा जमाया.
अजित कुमार सिंह हैं मौजूदा विधायक
2020 में CPI(ML)-Liberation के अजीत कुमार सिंह ने यहां से जीत दर्ज की, जो वर्तमान में विधायक हैं. उन्होंने JDU की अंजुम आरा को हराया था. अजीत सिंह ने आरोप लगाया है कि विपक्षी दल के विधायक होने के कारण डुमरांव में विकास कार्यों को जानबूझकर रोका जा रहा है, जिसमें 189 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाली ग्रामीण सड़कें, बाईपास और बिस्मिल्लाह खान आर्ट्स यूनिवर्सिटी की परियोजनाएं शामिल हैं.
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क्या है मौजूदा राजनीतिक हालात ?
वर्तमान राजनीतिक हालात की बात करें तो डुमरांव में जातीय समीकरणों के साथ-साथ विकास और सरकार की उपेक्षा एक बड़ा चुनावी मुद्दा बन रहे हैं. CPI(ML) के साथ-साथ यहां जेडीयू, राजद, भाजपा और अब प्रशांत किशोर का जनसुराज भी राजनीतिक रूप से सक्रिय हैं. प्रशांत किशोर की टीम ने डुमरांव में कई बैठकों, पदयात्राओं और जनसंवाद कार्यक्रमों के जरिए जनता से सीधा जुड़ाव बनाने की कोशिश की है. जनसुराज और एनडीए के बीच सीधा मुकाबला देखा जा रहा है, जबकि राजद की स्थिति यहां कमजोर मानी जा रही है. कुल मिलाकर, डुमरांव विधानसभा क्षेत्र राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील और चंचल है, जहां 2025 के चुनाव में एक दिलचस्प त्रिकोणीय मुकाबला होने की संभावना है.