Pappu Yadav: पूर्णिया से जीते निर्दलीय सांसद और कांग्रेस समर्थक नेता पप्पू यादव ने कहा कि अगर तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बने, तो या तो उन्हें अपनी जान गंवानी पड़ेगी या फिर बिहार छोड़ना पड़ेगा. चुनाव से कुछ महीने पहले पप्पू यादव का यह बयान न सिर्फ व्यक्तिगत दुश्मनी की ओर इशारा है बल्कि महागठबंधन की एकजुटता पर भी सवाल खड़ा करता है.
तेजस्वी-पप्पू के बीच विवाद कोई नई बात नहीं
तेजस्वी यादव और पप्पू यादव के बीच खटास कोई नई बात नहीं है. 2024 के लोकसभा चुनाव में जब RJD ने पूर्णिया से बीमा भारती को टिकट दिया और पप्पू यादव को नजरअंदाज किया गया तो यह टकराव और गहरा गया. पप्पू यादव ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा और जीत भी गए. बीमा भारती के लिए चुनाव प्रचार करने गए तेजस्वी ने कहा था कि अगर आप राजद को वोट नहीं देंगे और सामने वाली पार्टी के उम्मीदवार को वोट दीजिये. किसी तीसरे को नहीं. बिना नाम लिए तेजस्वी ने लोगों से अपील की थी कि वो निर्दलीय उम्मीदवार यानी पप्पू यादव को वोट ना दें.
नेतृत्व को लेकर खुला मतभेद
पप्पू यादव ने कई बार तेजस्वी को गठबंधन का नेता मानने से इनकार किया है. उन्होंने कांग्रेस के कुछ नेताओं जैसे राजेश राम या तारिक अनवर को वैकल्पिक मुख्यमंत्री चेहरा बताने की कोशिश की, हालांकि यह सुझाव कभी गंभीरता से नहीं लिया गया. यह साफ करता है कि महागठबंधन के भीतर नेतृत्व को लेकर भारी भ्रम और खींचतान है.
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पप्पू यादव का आरोप तेजस्वी की छवि को कर सकता है ध्वस्त
तेजस्वी पर लगाया गया पप्पू यादव का यह आरोप कि वह उनकी जान के दुश्मन बन सकते हैं. यह आरोप बेहद गंभीर है. यह आरोप न केवल तेजस्वी की सार्वजनिक छवि को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि RJD के पुराने जंगलराज के दौर की याद भी ताजा करता है. लालू-राबड़ी के शासन काल में कानून-व्यवस्था की हालत बेहद खराब थी और अब एक बार फिर ऐसी ही छवि उभरती नजर आ रही है. इससे उन मतदाताओं में भय पैदा हो सकता है जो महागठबंधन को एनडीए का ऑप्शन मानते हैं.
गठबंधन में बॉयकॉट और सीट शेयरिंग पर मतभेद
तेजस्वी यादव ने चुनाव बॉयकॉट का बयान देते हुए कहा था कि ऐसे फैसले सहयोगी दलों की सहमति से ही होंगे. लेकिन कांग्रेस ने बॉयकॉट से खुद को दूर कर लिया, जिससे यह साफ हो गया कि गठबंधन के भीतर समन्वय की भारी कमी है. यही हाल सीटों के बंटवारे में भी देखने को मिल रहा है.
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