मसौढ़ी विधानसभा सीट का जातीय समीकरण
मसौढ़ी विधानसभा सीट पर मुख्य रूप से यादव और दलित वोटरों का दबदबा है. एलजेपी (LJP) ने अपने उम्मीदवार उतारकर मुकाबले को दिलचस्प बनाने की कोशिश है. मसौढ़ी विधानसभा सीट पर मुख्य रूप से यादव और दलित वोटरों का दबदबा है. इसलिए पार्टियां जातीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए प्रत्याशी उतारती हैं.
मसौढ़ी अनुमंडल की कुल जनसंख्या 2,41,216 थी, जहां लिंगानुपात प्रति 1,000 पुरुषों पर 916 महिलाएं था और साक्षरता दर मात्र 53.04% थी. पटना के नजदीक होने के कारण यहां धीरे-धीरे शहरीकरण और जनसंख्या में वृद्धि हो रही है.
वर्तमान जनसंख्या आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन 2020 में यहां 3,37,282 मतदाता थे, जो 2024 लोकसभा चुनावों में बढ़कर 3,47,259 हो गए. 2020 में, अनुसूचित जाति के मतदाताओं की संख्या 22.14% थी, जबकि मुस्लिम मतदाता 4.2% थे.
मसौढ़ी विधानसभा सीट का इतिहास
मसौढ़ी विधानसभा क्षेत्र की स्थापना 1957 में हुई थी. वर्ष 2008 में इसे अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित किया गया, जो भारत के परिसीमन आयोग की सिफारिशों पर आधारित था. यह क्षेत्र पहले एक ‘स्विंग सीट’ माना जाता था, जहां विभिन्न विचारधाराओं वाली पार्टियां जीत हासिल करती थीं. लेकिन आरक्षण के बाद से यह राजद (RJD) और जदयू (JDU) के बीच सीधी टक्कर का केंद्र बन गया है.
2010 में जदयू ने इस सीट पर 5,032 मतों से जीत दर्ज की थी, जो उसकी लगातार तीसरी जीत थी. लेकिन जब 2015 में जदयू ने भाजपा से अलग होकर राजद से गठबंधन किया, तब इस सीट को राजद को सौंप दिया गया. राजद ने उस चुनाव में 39,186 मतों के भारी अंतर से जीत हासिल की. इसके बाद, अगली बार भी राजद ने जदयू प्रत्याशी को 32,227 मतों से हराकर सीट बरकरार रखी, भले ही जदयू तब फिर से भाजपा के साथ गठबंधन में था.
मसौढ़ी में राजद की पकड़ 2009 के लोकसभा चुनावों से स्पष्ट होती रही है. 2009, 2014 और 2019 में जब राजद ने पाटलिपुत्र सीट गंवाई थी, तब भी मसौढ़ी विधानसभा क्षेत्र में उसे बढ़त मिली थी. 2024 में, जब आखिरकार राजद ने पाटलिपुत्र लोकसभा सीट जीत ली, तो उसने मसौढ़ी में भाजपा के ऊपर निर्णायक बढ़त बनाई.
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आरक्षण से पहले, मसौढ़ी ने कांग्रेस को तीन बार, भाकपा और जदयू को दो-दो बार, जबकि जनसंघ, जनता पार्टी, जनता पार्टी (सेक्युलर), इंडियन पीपल्स फ्रंट, जनता दल और राजद को एक-एक बार विजेता बनाया था.
2025 के विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए के लिए असली चुनौती यह है कि कौन-सी सहयोगी पार्टी राजद के गढ़ मसौढ़ी में सेंध लगा सकती है. जदयू, लोजपा और हम पार्टी ने यहां पहले प्रयास किए हैं लेकिन सभी असफल रहे हैं. खुद भाजपा की आधारभूत पकड़ यहां सीमित रही है, जो विभिन्न लोकसभा चुनावों में दिखाई भी दी है. राजद को हराना यहां चमत्कार जैसा ही होगा, लेकिन राजनीति में चमत्कार भी होते हैं, और शायद यही एनडीए की एकमात्र उम्मीद है.