इसे भी देखें : दावा : दिवाला कानून से दो साल में 3 लाख करोड़ रुपये के फंसे कर्ज का हुआ समाधान
समीक्षा में आईबीसी को कर्ज नहीं लौटाने वाली कंपनियों से कारगर ढंग से निपटने के लिए हाल के समय का सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक सुधार माना गया है और एनसीएलटी के आधारभूत ढांचे को बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है, ताकि ऋण वसूली का समाधान समयबद्ध रूप से किया जा सके. इसमें कहा गया है कि आईबीसी से कर्ज वसूली व्यवस्था मजबूत हुई है और मार्च, 2019 तक समाधान प्रक्रिया के जरिये 94 मामलों का समाधान हुआ. नतीजतन, 1,73,359 करोड़ रुपये के दावों का निपटान किया गया. 28 फरवरी, 2019 तक 2.84 लाख रुपये की कुल राशि के 6,079 मामले दिवाला तथा दिवालियापन संहिता के प्रावधानों के अंतर्गत सुनवाई से पहले वापस लिये गये हैं.
समीक्षा में आरबीआई की रिपोर्ट के हवाले से कहा गया है कि बैंकों को पहले के गैर-निष्पादित खातों (एनपीए) से 50,000 करोड़ रुपये प्राप्त हुए हैं. आरबीआई की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अतिरिक्त 50,000 करोड़ रुपये की संपत्ति को गैर-मानक से उन्नत बनाकर मानक संपत्ति कर दिया गया है. इसमें कहा गया है कि इन बातों से आईबीसी के कारण ऋण लौटाने के मामले में व्यवहार परिवर्तन का पता चलता है.
समीक्षा में कहा गया है कि सरकार विलंब की समस्या के समाधान के उपायों पर गंभीरता से विचार कर रही है और राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) के लिए न्यायिक तथा तकनीकी सदस्यों के 6 अतिरिक्त पदों का सृजन किया गया है. एनसीएलटी के सर्किट पीठों की स्थापना पर विचार किया जा रहा है. फिलहाल, प्रमुख शहरों में स्थित 20 पीठों में एनसीएलटी के 32 न्यायिक सदस्य तथा 17 तकनीकी सदस्य हैं. आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि आईबीसी पारित किये जाने के बाद से भारत की दिवाला समाधान 2014 की रैंकिंग 134 से सुधर कर 2019 में रैंकिंग 108 हो गयी.