नयी दिल्ली : राज्य सरकारें कच्चे तेल के दाम में उछाल के चलते होने वाले अपने संभावित अतिरिक्त राजस्व-लाभ को छोड़ने को तैयार हो तो पेट्रोल 2.65 रुपये और डीजल 2 रुपये प्रति लीटर तक सस्ता हो सकता है. भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की ताजा इकोरेप रपट में यह निष्कर्ष निकाला गया है.
एसबीआई की इस रपट के अनुसार 19 राज्यों को मिला कर किये गये उसके विश्लेषण में यह दिखता है कि यदि कच्च तेल के अंतराष्ट्रीय भाव मौजूदा स्तर पर बने रहे तो इन राज्यों को 2018-19 में कम 18,728 करोड़ रुपये का अतिरिक्त राजस्व प्राप्त हो सकता है.
कुल तेल खपत में इन राज्यों का हिस्सा 93 प्रतिशत है. तेल की कीमतों में एक डॉलर प्रति बैरल की वृद्धि होने पर इन राज्यों को अपने बजट अनुमान से 2,675 करोड़ रुपये अतिरिक्त राजस्व प्राप्त होता है. यदि ये इसे छोड़ दें तो उनकी राजकोषीय स्थिति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.
रपट में कहा गया है, ‘हमारा अनुमान है कि राज्य पूरा अतिरिक्त राजस्व छोड़ दें तो पेट्रोल की कीमत में 2.65 रुपये प्रति लीटर और डीजल में 2 रुपये प्रति लीटर की कमी की जा सकती है.’ रपट में कहा गया है कि वर्तमान परिस्थितियों में यह सबसे अच्छी स्थिति हो सकती है. रिपोर्ट में पेट्रोल और डीजल की कीमतों को और तर्कसंगत बनाने के लिए इनके मूल्य निर्धारण तंत्र पर विचार करने का भी सुझाव दिया गया है.
इसके तहत राज्यों का वैट ईंधन के आधार मूल्य पर लगाने का सुझाव है जबकि अभी यह केंद्र सरकार का कर जोड़ कर बनी कीमत पर लगता है. यदि ऐसे किया जाए तो पेट्रोल का भाव 5.75 रुपये प्रति लीटर और डीजल में 3.75 रुपये प्रति लीटर कम हो सकता है. लेकिन इससे राज्यों को 34,627 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान हो सकता है. जो उनके सम्मिलित राजस्व घाटे के 0.2 प्रतिशत के बराबर है.
वहीं, दूसरी तरफ यदि केंद्र उत्पाद शुल्क में 1 रुपये की कमी करता है तो उसे केंद्रीय उत्पाद शुल्क राजस्व में 10,725 करोड़ रुपये का नुकसान होगा. राज्यों को विपरीत केंद्रीय उत्पाद शुल्क में कमी करने से केंद्र का राजकोषीय घाटा बढ़ेगा.
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