नयी दिल्ली: यूनियन बैंक ऑफ इंडिया (यूबीआई) की उसके 20 ग्राहक खातों में गैर-निष्पादित राशि (एनपीए) 3,350 करोड रुपये तक पहुंच गई.
खातेधारों का नाम सार्वजनिक करने से बैंक का इनकार
सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी के जवाब में बैंक ने हालांकि, वाणिज्यिक गोपनीयता का हवाला देते हुए समय पर कर्ज नहीं लौटाने वाले चूककर्ताओं का नाम साझा करने से इनकार किया. बैंक ने कहा ‘ग्राहकों का नाम जाहिर नहीं किया जा सकता क्योंकि यह वाणिज्यिक गोपनीयता का मामला है और सूचना के अधिकार कानून की धारा 8 (1, डी) के तहत इसे खुलासे की अनिवार्यता से छूट प्राप्त है.’ बैंक ने कहा ’31 दिसंबर 2013 तक शीर्ष 20 शीर्ष एनपीए खाते की राशि 3,350.17 करोड रुपये थी.
वेंकटेश ने मांगी थी आरटीआई के तहत जानकारी
एक व्यक्ति वेंकटेश नायक ने यूनियन बैंक ऑफ इंडिया समेत पांच बैंकों से उनमें एनपीए के लिये जिम्मेदार 20 बडे उधार लेने वाले ग्राहकों की जानकारी मांगी थी. अन्य चार बैंकों भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई), बैंक आफ इंडिया, सेंट्रल बैंक आफ इंडिया और इंडियन ओवरसीज बैंक ने भी एनपीए की राशि और इससे जुडे ग्राहकों की सूची संबंधी जानकारी साझा करने से इनकार कर दिया.
एसबीआई ने सूचना के अधिकार के आवेदन के जवाब में कहा, ‘यह सूचना प्रदान नहीं की जा सकती क्योंकि यह तीसरे पक्ष की व्यक्तिगत जानकारी से जुडी है और यह मामला बैंक के ग्राहक के आपसी विश्वास के संबंध से जुडा है. साथ ही इसे खुलासा प्रावधान से भी छूट है.’ अन्य बैंकों ने भी इसी तरह की बात कही.
वित्तमंत्री ने की है पहल
विदित हो कि वित्तमंत्री अरूण जेटली ने बैंकों के आर्थिक संकट से निपटने के लिए कई स्तरों पर पहल शुरू की है. इनमें से एक बडे ऋण दाताओं से कर्ज की उगाही भी शामिल है. कई कार्यक्रमों में वित्तमंत्री ने यह संकेत दिये है कि जलद ही बैंकों को ऐसी कार्यप्रणाली विकसित करने को कहा जिसमें बडे ऋणों की वसूली सख्ती से की जा सके. बैंक ने भी सरकार से ऐसे खाताधारियों के नाम प्रकाशित करने की इजाजत मांगी थी जो जानबूझ कर बैंकों के ऋण वापस नहीं कर रहे हैं.
क्या बैंक करता है भेदभाव
सबसे बडा सवाल यह है कि क्या बैंक छोटे और बडे कर्जदारों के साथ भेदभाव करता है. एक ओर छोटे कर्जदारों के नाम प्रकाशित करवा कर उन्हें शर्मिंदा करने का प्रयास किया जा रहा है, जिससे वे अपने ऋण को जल्द से जल्द जमा करें. वहीं बडे कर्जदारों के नाम उजागर करने में बैंक परहेज कर रहे हैं.
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