संगठन में दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एपी शाह, पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल एल रामदास, पूर्व आईएएस अधिकारी अरुणा राय और वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण शामिल हैं. इंडियाबुल्स ने इस याचिका को दुर्भावनापूर्ण बताते हुए इसका विरोध किया है. कंपनी का कहना है कि इससे उसके कारोबार और प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंच रहा है. गैर-सरकारी संगठन का कहना है कि इस मामले में जनता का बड़ा पैसा लगा है.
उसकी दलील है कि कंपनी ने पिछले कई सालों में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के विभिन्न बैंकों से बड़ा ऋण लिया है, जो जनता का है. इसी तरह कंपनी में शेयरधारकों और निवेशकों ने पैसा लगा रखा है. उसका आरोप है कि इस समूह ने अपनी कई अनुषंगी कंपनियों के माध्यम से सार्वजनिक धन के आधार पर बड़े कॉरपोरेट घरानों को संदिग्ध तरीके के ऋण दिये. बाद में उन कॉरपोरेट घरानों के जरिये कर्ज का धन इंडियाबुल्स के प्रवर्तकों के स्वामित्व वाली कंपनियों में स्थानांतरित किया, जिससे उनकी निजी संपत्ति में इजाफा हुआ.
कंपनी ने एक बयान में इन आरोपों को खारिज किया है. उसका कहना है कि इस याचिका को दुर्भावनावश सार्वजनिक भी किया गया. उसका दावा है कि कुछ निहित स्वार्थी तत्व बदनियती के चलते शेयर बाजार में कंपनी के शेयर मूल्य को अस्थिर करना चाहते हैं.
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