नयी दिल्ली : एक राष्ट्रीय राजमार्ग को छह लेन का करने के लिए रिलायंस इंफ्रा को अनुचित लाभ पहुंचाने पर एनएचएआई की आलोचना करते हुए नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने आज कहा कि कंपनी ने टोल की राशि एक रिलायंस म्यूचुअल फंड में डाली और रियायत समझौते में एक महत्वपूर्ण उपबंध को हटा दिया गया.
रिलायंस इंफ्रा ने 2010 में दिल्ली-आगरा राजमार्ग को छह लेन में तब्दील करने के लिए डीए टोल रोड प्राइवेट लिमिटेड नाम से एक विशेष कंपनी बनाई और 16 अक्तूबर, 2012 से टोल का संग्रह करना शुरू किया. कैग ने कहा, ‘उपलब्धियां हासिल करने में विफल रहने के मामले में टोल संग्रह रोकने के लिए अन्य छह लेन के रियायती समझौतों में उपलब्ध उपबंध को इस परियोजना के मामले में समझौते से हटा दिया गया.
अगस्त, 2013 के अंत तक कंपनी ने कुल 120 करोड रुपये संग्रह किया और 78.32 करोड रुपये का इस्तेमाल लिक्विड फंडों में निवेश के लिए किया गया. कैग ने भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण में पीपीपी परियोजनाओं के क्रियान्वयन पर अपनी अंकेक्षण रिपोर्ट आज संसद में पेश की.
सडक क्षेत्र के नियामक एनएचएआई की खिंचाई करते हुए कैग ने कहा कि यद्यपि पर्यावरण मंजूरियां एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से अनापत्ति प्रमाण पत्र लंबित थे, टोल संग्रह का दिन तय करने की नियामक की कार्रवाई अपरिपक्व थी. इस रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए रिलायंस इंफ्रा ने एक बयान में कहा, कैग की रिपोर्ट में लगाए गए आरोप पूरी तरह से निराधार हैं और इनमें तथ्यों की कमी है.
हमने किसी कानून रियायती समझौतों का उल्लंघन नहीं किया है. सभी निवेश व खर्चे एनएचएआई व बैंकों के साथ हुए समझौतों के पूरी तरह से अनुरुप हैं.
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