Nuclear Power Plant: केंद्रीय ऊर्जा मंत्री मनोहर लाल ने शनिवार को हरियाणा के फतेहाबाद जिले में स्थित गोरखपुर हरियाणा अणु विद्युत परियोजना (GHAVP) की प्रगति की समीक्षा की. यह परियोजना भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम लिमिटेड (NPCIL) की ओर से क्रियान्वित की जा रही है और इसे उत्तर भारत का पहला परमाणु ऊर्जा संयंत्र माना जा रहा है.
मुख्यमंत्री के साथ दौरा और समीक्षा
इस अवसर पर हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी भी मंत्री के साथ मौजूद थे. उन्होंने संयंत्र स्थल का निरीक्षण किया और NPCIL के अधिकारियों से परियोजना की वर्तमान स्थिति और आगामी योजनाओं की जानकारी ली. मनोहर लाल ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ (पुराना ट्विटर) पर साझा किया कि यह परियोजना न केवल हरियाणा बल्कि उत्तर भारत की दीर्घकालिक ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करेगी, बल्कि यह भारत की स्वच्छ ऊर्जा प्रतिबद्धता को भी मजबूती देगी.
परियोजना की लागत और संरचना
GHAVP परियोजना में 700 मेगावाट क्षमता के चार प्रेशराइज्ड हेवी वॉटर रिएक्टर (PHWR) स्थापित किए जा रहे हैं. इस पूरे प्रोजेक्ट पर अनुमानित लागत 41,594 करोड़ रुपये है. वाणिज्यिक संचालन मार्च 2031 तक शुरू होने की उम्मीद जताई जा रही है.
बिजली वितरण और लक्ष्य
चारों यूनिट्स से कुल मिलाकर 2,800 मेगावाट बिजली का उत्पादन होगा. इसमें से 50% बिजली हरियाणा को और बाकी 50% केंद्रीय पूल में जाएगी, जिसका इस्तेमाल आवश्यकता के अनुसार देश के विभिन्न हिस्सों में किया जाएगा. मनोहर लाल ने बताया कि यूनिट एक और दो 2031 और बाकी दो यूनिट्स 2032 तक चालू हो जाएंगी.
परियोजना में देरी के कारण
मंत्री ने स्पष्ट किया कि आमतौर पर परमाणु ऊर्जा परियोजना को पूरा करने में 13 से 13.5 साल का समय लगता है. हालांकि, GHAVP में कुछ तकनीकी और प्रशासनिक कारणों से देरी हुई है. यह परियोजना जनवरी 2014 में स्वीकृत हुई थी.
ऊर्जा संरक्षण की पहल
मनोहर लाल ने यह भी बताया कि सरकार एयर कंडीशनर के तापमान को 20 से 28 डिग्री सेल्सियस के बीच मानकीकृत करने की रूपरेखा पर काम कर रही है. इससे बिजली की बचत की जा सकेगी.
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NPCIL की CSR पहल
NPCIL की ओर से स्थानीय समुदायों के लिए CSR योजनाएं भी संचालित की जा रही हैं. इनमें सड़क और स्कूल निर्माण, मेडिकल वैन की व्यवस्था, और एस्ट्रो टर्फ हॉकी मैदान का निर्माण जैसी योजनाएं शामिल हैं, जिन पर लगभग 80 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं. यह परियोजना देश की ऊर्जा आत्मनिर्भरता और शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर मानी जा रही है.
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