World Refugee Day 2025 : विश्व शरणार्थी दिवस क्यों है अहम और कब हुई इसकी शुरुआत

हर साल 20 जून को विश्व शरणार्थी दिवस मनाया जाता है. अंतरराष्ट्रीय संबंधों में उथल-पुथल और कई देशों के बीच जारी युद्ध के इस दौर में विश्व शरणार्थी दिवस की अहमियत और बढ़ गयी है. इस दिन दुनिया उन लोगों की शक्ति और साहस का सम्मान करती है, जिन्हें संघर्ष या उत्पीड़न से बचने के लिए अपने देश से भागने के लिए मजबूर होना पड़ा है. जानें कब हुई विश्व शरणार्थी दिवस मनाने की शुरुआत और क्यों अहम है यह दिन...

By Preeti Singh Parihar | June 18, 2025 6:44 PM
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World Refugee Day 2025 : विश्व शरणार्थी दिवस संयुक्त राष्ट्र की ओर से दुनिया भर में शरणार्थियों के सम्मान के लिए नामित एक अंतरराष्ट्रीय दिवस है. यह दिवस हर साल 20 जून को मनाया जाता है और अपना देश, अपनी जमीन से पलायन करने के लिए मजबूर लोगों के अधिकारों, जरूरतों और सपनों पर प्रकाश डालता है. इस वर्ष विश्व शरणार्थी दिवस शरणार्थियों के साथ एकजुटता पर केंद्रित है और सुरक्षा पाने के उनके अधिकार की रक्षा, उनकी दुर्दशा का समाधान ढूंढ़ने, संघर्षों को समाप्त करने और उनके सुरक्षित घर लौट सकने की पैरवी करता है. विश्व शरणार्थी दिवस वैश्विक शरणार्थी संकट का स्थायी समाधान खोजने और सभी विस्थापित लोगों के लिए एक सुरक्षित स्थान प्रदान करने की अहमियत दर्शाता है. इस वर्ष इसकी थीम है-‘एकजुटता’.

कब हुई इस दिन की शुरुआत

शरणार्थियों की स्थिति से संबंधित 1951 के कन्वेंशन की 50वीं वर्षगांठ मनाने के लिए 20 जून, 2001 को पहली बार विश्व शरणार्थी दिवस मनाया गया था. इस दिन को पहले अफ्रीका शरणार्थी दिवस के रूप में मान्यता दी गयी थी और बाद में दिसंबर 2000 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने आधिकारिक तौर पर इसे शरणार्थियों के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस घोषित किया. यूएन की वेबसाइट के मुताबिक हर मिनट 20 लोग युद्ध, उत्पीड़न या आतंक से बचने के लिए अपना सब कुछ छोड़कर विस्थापित होते हैं और दूसरे देशों में शरण लेने के लिए मजबूर होते हैं.

शरणार्थी किसे कहते हैं

युद्ध, हिंसा या उत्पीड़न के कारण अपना देश छोड़कर दूसरे देश में शरण लेने के लिए मजबूर होने वाले व्यक्ति शरणार्थी कहलाते हैं. यूएन एजेंसी की वार्षिक ग्लोबल ट्रेंड्स रिपोर्ट के मुताबिक अप्रैल 2025 के अंत तक विश्व भर में 12.21 करोड़ लोग जबरन विस्थापन का शिकार थे. पिछले वर्ष इसी समय यह आंकड़ा 12 करोड़ था. यह रिपोर्ट बताती है कि पिछले एक दशक से हर साल अपना घर छोड़कर जाने के लिए मजबूर होने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है.

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