फिल्म – मडगांव एक्सप्रेस
निर्माता- एक्सेल एंटरटेनमेंट
निर्देशक- कुणाल खेमू
कलाकार- दिव्येंदु शर्मा,प्रतीक गांधी, नोरा फतेही, अविनाश तिवारी, छाया कदम, उपेन्द्र लिमये, रेमो डिसूजा और अन्य
प्लेटफार्म- सिनेमाघर
रेटिंग- तीन
छोटे पर्दे के धारावाहिक गुल गुलशन गुलफाम में बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट अपने अभिनय की शुरुआत करने वाले अभिनेता कुणाल खेमू ने अपने अब तक के करियर में अलग – अलग जॉनर की फिल्मों में अभिनय किया है, लेकिन उन्हें खास पहचान उनके कॉमेडी किरदारों ने दी है. शायद यही वजह है कि उन्होंने अपने निर्देशन के लिए कॉमेडी ड्रामा फिल्म मडगांव एक्सप्रेस को चुना. फिल्म के लेखन की जिम्मेदारी भी उन्होंने ही ली है. फिल्म की कहानी में नयापन भले ना हो लेकिन इसका ट्रीटमेंट, संवाद और कलाकारों का अभिनय इस फिल्म को एंटरटेनिंग जरूर बना गया है.
तीन दोस्तों की है कहानी
फिल्म की कहानी बचपन के तीन दोस्तों डोडो ( दिव्येंदु) पिंकु(प्रतीक) और आयुष (अविनाश तिवारी) की है. जो स्कूल के दिनों से गोवा जाने का प्लान कर रहे हैं, लेकिन कॉलेज और उसके बाद नौकरी के लिए पिंकु और आयुष अलग – अलग देश तक चले जाते हैं लेकिन ये तीनों दोस्त साथ में गोवा नहीं जा पाते हैं. आखिरकार तीनों दोस्त सालों बाद सोशल मीडिया के जरिये फिर से जुड़ते हैं और गोवा जाने का प्लान कर ही लेते हैं, लेकिन यह सफर उनके लिए मस्ती नहीं बल्कि मुसीबतों भरा साबित हो जाता है. हालात ऐसे बनते हैं कि पुलिस और गैंगस्टर्स सभी उनके पीछे पड़ जाते हैं. यह सब कैसे होता है. उसके बाद क्या होता है. यही फिल्म की कहानी है. फिल्म में सीक्वल की गुंजाइश को भी बरकरार रखा गया है.
फिल्म की खूबियां और खामियां
फिल्म की कहानी में कहने को ज्यादा कुछ नहीं है. गोवा फिल्म का अहम किरदार है, तो फिल्म की कहानी से ड्रग जुड़ गया है. ड्रग है ,तो गन और गैंगस्टर्स भी होंगे ही. मूल रूप से कहानी वन लाइनर ही है, लेकिन यह काफ़ी मनोरंजक तरीके से कही गयी है. जिस वजह से फिल्म शुरू से आख़िर तक एंटरटेन ज़रूर करती रहती हैं. फिल्म की कहानी में सरसरी तौर पर ही सही सोशल मीडिया की बनावटी दुनिया पर भी तंज कसा गया है, उससे फ़िल्म में अच्छा ह्यूमर भी जुड़ा है. फिर चाहे दिव्येंदु का स्टार्स के साथ फोटो लगाने वाला सीन हो या एयरपोर्ट वाला कन्फ़ेशन सीन. फिल्म का सेकेंड हाफ थोड़ा खींच गया है और क्लाइमेक्स औसत रह गया है. क्लाइमेक्स में थोड़ा और काम करने की जरूरत थी. छाया कदम के किरदार को थोड़ा और स्पेस कहानी में देने की जरूरत थी. फिल्म के संवाद कहानी को रोचक बना गये हैं. यह फिल्म की अहम यूएसपी है. फिल्म का गीत संगीत कहानी के मूड को मैच करता है. फिल्म की सिनेमाटोग्राफ़ी कहानी के अनुरूप है.
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दिव्येंदु और प्रतीक चमके
अभिनय की बात करें तो फिल्म के तीनों ही अभिनेताओं ने ओटीटी में अपनी खास पहचान बनायी है. इस फिल्म को भी वह अपने अभिनय से खास बनाते हैं. खासकर दिव्येंदु और प्रतीक ने. दिव्येंदु ने अपने अभिनय के जरिये अपने पात्र को बेहद मनोरंजक बनाया है, तो प्रतीक गांधी की भी तारीफ बनती है, जिस तरह से उन्होंने दोहरे अन्दाज में अपनी भूमिका को निभाया है. अविनाश तिवारी का किरदार दिव्येंदु और प्रतीक गांधी के मुक़ाबले थोड़ा दबा हुआ है, लेकिन वह भूमिका के साथ न्याय करते है. तीनों दोस्तों की केमिस्ट्री अच्छी है. छाया कदम और उपेन्द्र लिमये अपने अभिनय और अन्दाज से एक अलग ही रंग इस फ़िल्म में भरते हैं. रेमो डिसूजा और नोरा फतेही को फिल्म में करने को कुछ खास नहीं था.
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