- “कर्म करो, फल की चिंता मत करो”
भगवान कृष्ण ने कहा कि हमें अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए, न कि उनके फल पर.
- “यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत, अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्”
जब जब धर्म का ह्रास होता है, तब तब भगवान अवतार लेते हैं.
- “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन”
तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, फल पर नहीं.
- “योगस्थः कुरु कर्माणि संगं त्यक्त्वा धनञ्जय”
योग में स्थिर होकर, आसक्ति त्याग कर कर्म करो.
- “माया हि परिभूतं हि सदा धर्मे स्थितं ययाः”
जो धर्म में स्थिर रहते हैं, वे ही सच्चे योगी हैं.
- “न हि देहभृता शक्यं त्यक्तुं कर्माण्यशेषतः”
शरीर के साथ रहकर कर्मों से पूरी तरह बच पाना असंभव है.
- “तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचर”
इसलिए, बिना आसक्ति के अपने कर्मों को लगातार करो.
- “विद्या विनय संपन्ने ब्राह्मणे गव्य हस्तिनी”
सच्ची विद्या वही है जो विनम्रता और ज्ञान के साथ जुड़ी हो.
- “जो लोग निराश्रित हैं, वे अपने कर्मों के फल की ही चिंता करते हैं”
जो लोग भौतिक लाभ में ही रुचि रखते हैं, वे ही दुखी होते हैं.
- “शरीरवाङ्मनोभिर्यत्कर्म प्रारभते नरः”
मन, वाणी और शरीर के द्वारा जो भी कर्म किया जाता है, वही हमारा भाग्य तय करता है.
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भगवद गीता का यह ज्ञान हमें सिखाता है कि हम अपने कर्मों पर ध्यान केंद्रित करें और फल की चिंता न करें.