- “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन”
तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, फल में नहीं.
- “योगस्थः कुरु कर्माणि संन्यासयोगयुक्तः”
जो व्यक्ति योग में स्थिर होकर कर्म करता है, वही सही मार्ग पर चलता है.
- “तुम्हारे भीतर जो आत्मा है, वह न तो जन्मती है, न मरती है”
आत्मा अमर है, वह न जन्मती है, न मरती है.
- “मनुष्य का शरीर नाशवान है, परन्तु आत्मा अजर-अमर है”
शरीर नाशवान है, लेकिन आत्मा कभी नष्ट नहीं होती.
- “जो हुआ, वह अच्छा हुआ; जो हो रहा है, वह भी अच्छा है; जो होगा, वह भी अच्छा होगा”
वर्तमान में जो कुछ भी हो रहा है, उसे सकारात्मक दृष्टिकोण से देखो.
- “तुम्हारे द्वारा किये गए कार्य तुम्हारे भाग्य को तय करते हैं”
आपके कर्म ही आपके जीवन की दिशा निर्धारित करते हैं.
- “सम्बन्धों में प्रेम और कर्म में निष्कामता होनी चाहिए”
सभी कार्यों को बिना किसी अपेक्षा के और प्रेमपूर्वक करो.
- “जिसे सत्य का ज्ञान होता है, वह कभी नष्ट नहीं होता”
जो सत्य को जानता है, वह कभी नहीं हारता.
- “जो अपने जीवन में स्थिरता और संतुलन बनाए रखता है, वही सच्चा योगी होता है”
सच्चे योगी वही हैं, जो जीवन में संतुलन बनाए रखते हैं.
- “ईश्वर के प्रति समर्पण से ही जीवन में शांति और संतोष मिलता है”
ईश्वर की भक्ति और समर्पण से जीवन में सच्ची शांति और सुख प्राप्त होते हैं.
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भगवद गीता के ये उपदेश हमें जीवन में हर परिस्थिति का सामना सकारात्मक तरीके से करने की प्रेरणा देते हैं.