- “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन”
तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, उसके फलों में नहीं.
- “योगः कर्मसु कौशलम्”
योग वही है जो कर्म में कुशलता और निपुणता लाता है.
- “धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे युयुत्सु बहुर्विदः”
धर्म के क्षेत्र में ही सच्चे योद्धा अपने कर्तव्य का पालन करते हैं.
- “संगत्वं यत्र कर्तव्यं तत्र न हि फलप्रदः”
जहां कर्तव्य में संलग्नता होती है, वहां ही फल की चिंता नहीं करनी चाहिए.
- “अहिंसा परमो धर्मः”
अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है.
- “जैसे बीज बोएंगे, वैसे ही फल पाएंगे”
आपके कार्य ही आपके भविष्य का निर्धारण करते हैं.
- “कर्म करो, पर उसका फल मत लो”
निस्वार्थ भाव से कर्म करो, फल की अपेक्षा मत रखो.
- “मनुष्य को अपने मन को नियंत्रित करना ही सबसे बड़ा योग है”
आत्मनियंत्रण ही सच्चा योग है.
- “जो स्वयं को जानता है, वही वास्तव में बुद्धिमान होता है”
आत्मज्ञान ही सच्ची बुद्धिमत्ता है.
- “भक्ति से ही मोक्ष प्राप्त होता है”
सच्चे प्रेम और भक्ति से ही आत्मा को मुक्ति मिलती है.
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भगवद गीता के ये उद्धरण हमें सच्चे मार्ग पर चलने, अपने कर्तव्यों को निभाने और जीवन को पावन बनाने के लिए प्रेरित करते हैं.