अपने ही लोगों के प्रति अंधा प्रेम होता है खतरनाक
चाणक्य कहते हैं: “अति स्नेह पापाय भवति.” यानी कि अत्यधिक प्रेम, अक्सर दुख का कारण बनता है. कई बार हम अपने घर के ही किसी सदस्य को लेकर इतने भावुक हो जाते हैं कि उसके दोष भी नजर नहीं आते. कभी-कभी ये अंधा मोह बच्चों, भाई-बहनों, जीवनसाथी या माता-पिता के प्रति होता है. इसी मोह की वजह से हम गलतियों को नजरअंदाज करते हैं और खुद ही नुकसान झेलते हैं. जब मोह विवेक पर हावी हो जाए, तो वो दुश्मन बन जाता है.
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कैसे पहचानें
- क्या आप किसी को बार-बार बचा रहे हैं, चाहे वो बार-बार गलती कर रहा हो?
- क्या आप किसी के लिए खुद को बार-बार नुकसान पहुँचा रहे हैं?
‘मैं ही सही हूं’ का जहर भी बनता है पतन का कारण
चाणक्य ने अहंकार को सबसे बड़ा पतनकारक बताया. उनके अनुसार जब इंसान “मैं” और “मेरा” में फंस जाता है, तो वह अपने आसपास के रिश्तों को नुकसान पहुंचाता है. घर के भीतर अगर कोई सदस्य हमेशा खुद को सही मानता है, तो वहां टकराव, गुस्सा और दूरी बढ़ जाती है.
कैसे पहचानें
- क्या आप माफी मांगने से कतराते हैं?
- क्या दूसरों की राय को कमतर समझते हैं?
- क्या घर में सब आपके मूड के हिसाब से चलना चाहिए, ऐसा सोचते हैं?
आलस्य है सबसे खतरनाक दुश्मन
चाणक्य कहते हैं “आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः.” अथार्त आलस्य मनुष्य के शरीर में रहने वाला सबसे बड़ा शत्रु है. यह दुश्मन घर के किसी कोने में चुपचाप बैठा होता है. जो टालता है, कल पर छोड़ता है, खुद से भागता है. वह न सिर्फ खुद को रोकता है, बल्कि पूरे परिवार के विकास को भी बाधित करता है. अक्सर इस तरह का इंसान जिम्मेदारियों से दूर भागता है और किसी भी चीज के लिए दूसरों पर निर्भर रहता है.
कैसे पहचानें
- क्या कोई सदस्य हमेशा बहाने बनाता है, जिम्मेदारी से बचता है?
- क्या आप अपनी खुद की आदतों में देरी, टालमटोल और अनिच्छा महसूस करते हैं?
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