Gambling on Diwali: दिवाली पर क्यों खेलते हैं जुआ, जानिए कैसे और क्यों शुरू हुई ये परंपरा
Gambling on Diwali: दिवाली की रात को जुआ खेलना शुभ संकेत के तौर पर खेला जाता है. एक सर्वे में मिली जानकारी के मुताबिक जुआरी सबसे पहले दिवाली की रात जुआ खेलते हैं और फिर धीरे-धीरे उन्हें इसकी लत लग जाती है. इसलिए इस खेल को अपने ऊपर हावी न होने दें.
By Bimla Kumari | October 27, 2024 4:48 PM
Gambling on Diwali: दिवाली की रात लक्ष्मी पूजन के दौरान कई तरह की मान्यताओं का पालन किया जाता है. हर समाज अपने हिसाब से लक्ष्मी पूजन करता है और परंपराओं का पालन करता है लेकिन सभी का उद्देश्य लक्ष्मी गणेश पूजा ही है. ज्यादातर घरों में लक्ष्मी पूजन के बाद जुआ या ताश खेला जाता है, उनके अनुसार ऐसा करना शुभ माना जाता है. जुए का मुख्य लक्ष्य साल भर किस्मत आजमाना होता है. हालांकि जुआ एक सामाजिक बुराई है और सरकार इस पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा रही है क्योंकि जुआ खेलने से जीवन के हर क्षेत्र में नुकसान होता है, लेकिन दिवाली की रात जुआ खेलने की परंपरा रही है. आइए जानते हैं जुए के फायदे और नुकसान…
महादेव और माता पार्वती ने खेला था चौसर
दिवाली की रात जुआ खेलना इसलिए शुभ माना जाता है क्योंकि कार्तिक मास की अमावस्या को भगवान शिव और माता पार्वती ने चौसर खेला था. इस खेल में भगवान महादेव हार गए थे, तभी से दिवाली की रात जुआ खेलने की परंपरा शुरू हुई. हालांकि इस बारे में किसी भी ग्रंथ में कोई तथ्य नहीं है, यह सिर्फ धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है.
जुए को लेकर एक मान्यता है दिवाली की रात को महानिशा की रात माना जाता है और यह रात शुभता से भरपूर होती है. इस रात पूजा के दौरान देवी लक्ष्मी का आह्वान किया जाता है. दिवाली की रात जुआ खेलना हार-जीत का संकेत माना जाता है. मान्यता है कि इस रात जो भी जुए में जीतता है, साल भर किस्मत उसके साथ रहती है. वहीं हारना आर्थिक नुकसान का संकेत माना जाता है. दिवाली की रात को जुआ खेलना शुभ संकेत के तौर पर खेला जाता है. एक सर्वे में मिली जानकारी के मुताबिक जुआरी सबसे पहले दिवाली की रात जुआ खेलते हैं और फिर धीरे-धीरे उन्हें इसकी लत लग जाती है. इसलिए इस खेल को अपने ऊपर हावी न होने दें.
जुआ खेलने का नुकसान देवताओं को भी झेलना पड़ा
जुए के कारण देवताओं को भी हुआ है नुकसान दिवाली की रात जुआ खेलना कुछ लोग अशुभ मानते हैं क्योंकि ऐसा करने से घर की सुख-शांति के साथ-साथ लक्ष्मी भी चली जाती है. महाभारत में युधिष्ठिर ने जुआ खेलकर यह ज्ञान दिया था, यह विनाशकारी लत है. इससे हमेशा दूर रहना ही बेहतर है. इस विनाशकारी खेल के कारण सिर्फ इंसानों को ही नहीं बल्कि देवताओं को भी भयंकर परेशानियों का सामना करना पड़ा है. बलराम ने भी जुआ खेला था, जिसमें वे हार गए और उन्हें राजसभा में अपमानित होना पड़ा. महाभारत का युद्ध जुए के कारण ही लड़ा गया था.
जुआ लालच से पैदा होने वाली बुरी आदत है. इसे पोषित करने के लिए ऐसी झूठी और भ्रामक अवधारणाएँ फैलाई जाती हैं, जिनका न तो कोई आध्यात्मिक आधार है, न ही कोई तांत्रिक आधार और न ही कोई सामाजिक सरोकार. इस संसार में सब कुछ परिवर्तनशील है. यहां तक कि आपका रूप, रंग, पद, प्रतिष्ठा और धन भी. धन की स्वामिनी लक्ष्मी को भी चंचल कहा गया है, इसलिए धन को स्थाई मानने का विचार एक भूल है. जुए के माध्यम से धन कमाने का विचार योग्य, परिश्रमी और उद्यमी लोगों का नहीं, बल्कि निष्क्रिय, अक्षम और आलसी लोगों का है.
क्या दिवाली की रात शत्रु का नाश होता है?
शत्रु का नाश करने का यह विचार हमारी इच्छाओं का प्रतिबिंब मात्र है. यह एक कल्पना है, जिसके धागे हमारे इरादों, उद्देश्यों और विचारों में बुने हुए हैं. जिस प्रकार बबूल के पेड़ पर आम के फल नहीं लगते, उसी प्रकार नकारात्मक बीजों से सकारात्मक फल नहीं मिल सकते. शत्रुता को नष्ट करने का एकमात्र कारगर उपाय शत्रुओं को नष्ट करना नहीं, बल्कि शत्रुता को नष्ट करना है और शत्रुता को नष्ट करने के लिए क्षमा से बेहतर कोई उपाय नहीं है. हम जो भी करेंगे, वह हमें ही लौटकर आएगा. इसलिए दीपावली की महानिशा में मारण प्रयोग के बारे में सोचना, जो अमावस्या के अंधकार को भी प्रकाशित करने की क्षमता रखता है, अज्ञानता और बड़ी भूल दोनों है.