प्यार में त्याग जरूरी… भगवान श्रीकृष्ण से समझे सच्चे प्रेम का अर्थ
Gita Updesh: सच्चा प्रेम वही है, जिसमें लेश मात्र भी स्वार्थ की भावना न हो. प्रेम केवल त्याग और सेवा का रूप होता है.
By Shashank Baranwal | March 28, 2025 7:40 AM
Gita Updesh: ढाई अक्षर का शब्द प्रेम इस ब्रह्मांड की असीम भावनाओं को समेटे हुए है. प्रेम शब्द इतना गहरा है कि उसे समझने के लिए एक जिंदगी काफी नहीं होती है. भगवान श्रीकृष्ण ने प्रेम के सच्चे अर्थ को बताया है. उन्होंने बताया कि सच्चा प्रेम केवल एक भावनात्मक आकर्षण नहीं होता है, बल्कि प्रेम समर्पण, त्याग और नि:स्वार्थता का संगम होता है. सच्चा प्रेम वही है, जिसमें लेश मात्र भी स्वार्थ की भावना न हो. प्रेम केवल त्याग और सेवा का रूप होता है. श्रीकृष्ण ने अपने जीवन में उपदेशों, कर्मों और लीलाओं से प्रेम की विभिन्न परिभाषा दी है. ऐसे में आइए प्रेम के दिव्य स्वरूप को भगवान श्रीकृष्ण से समझते हैं.
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में बताया है कि प्रेम का मतलब किसी को पा लेना ही नहीं होता है, बल्कि उसमें खो जाना सच्चे प्रेम का अर्थ होता है. प्रेम त्याग मांगता है और जो व्यक्ति त्याग नहीं कर सकता, वो प्रेम नहीं कर सकता है. इसके अलावा, उन्होंने यह भी कहा है कि प्रेम को कभी छीनकर पाया नहीं जा सकता है.
प्रेम के दर्शन को समझने के लिए आप राधा रानी और श्रीकृष्ण का उदाहरण ले सकते हैं. भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी का प्रेम शुद्ध आत्मिक प्रेम का प्रतीक माना जाता है. यह सांसारिक प्रेम से कहीं अधिक आत्मा-परमात्मा के मिलन का प्रतीक है.
श्रीकृष्ण कहते हैं कि प्रेम केल सांसारिक आकर्षण तक सीमित नहीं होता है. यह भक्ति का एक उच्चतम स्वरूप है. सुदामा का उदाहरण लेते हुए यह समझा जा सकता है कि प्रेम में धन, पद या परिस्थिति का कोई मोल नहीं होता है, प्रेम में बस निर्मल भाव ही सच्चा प्रेम होता है.
प्रेम में स्वार्थपूर्ण भावनाओं से परे होता है. इसमें प्राप्ति की कोई इच्छा नहीं होती है, बल्कि पूर्ण समर्पण का भाव होता है. ऐसे में यह कहा जा सकता है कि जो व्यक्ति प्रेम में वापस पाने का भाव रखता है, वो प्रेम नहीं सौदा करता है, क्योंकि प्रेम में सिर्फ दिया जाता है, मांगा कुछ नहीं जाता है.