– आत्मा अमर है
“न जायते म्रियते वा कदाचित्…”
यह श्लोक बताता है कि आत्मा न कभी जन्म लेती है, न मरती है.महिलाएं आत्मिक शक्ति को समझें और खुद को सीमित न समझे.
– कर्म करो, फल की चिंता मत करो
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन”
यह उपदेश महिलाओं को प्रेरित करता है कि वे अपने कर्म पर ध्यान दें, परिणाम अपने आप आएगा.
– समत्व का भाव
“योगस्थः कुरु कर्माणि…”
यह बताता है कि स्त्रियों को सफलता और असफलता दोनों में समान भाव रखना चाहिए.
– आत्म-विश्वास का महत्व
गीता के अनुसार, आत्मा स्वयं में पूर्ण है. महिलाओं को खुद पर विश्वास रखना चाहिए, क्योंकि आत्मा किसी से कम नहीं.
– मन पर नियंत्रण
“बन्धुरात्मात्मनस्तस्य…”
जो अपने मन को जीत लेता है, वही सच्चा विजेता है. महिलाओं को भावनाओं को दिशा देने की कला सीखनी चाहिए.
– श्रद्धा और भक्ति से सब संभव है
“अनन्याश्चिन्तयन्तो मां…”
जो पूर्ण श्रद्धा से भक्ति करती हैं, भगवान उनका मार्ग स्वयं बनाते हैं.
– डर को त्यागें
“वीतरागभयक्रोधा…”
डर, क्रोध और राग को त्यागकर स्त्रियाँ मानसिक शांति पा सकती हैं और मजबूती से जीवन जी सकती हैं.
– ज्ञान सबसे बड़ा बल है
“न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते”
स्त्रियों को शिक्षा और आत्मज्ञान को प्राथमिकता देनी चाहिए, यही उनका सशक्तिकरण है..
– अपने स्वधर्म का पालन करें “श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः…”
हर महिला को अपने कर्तव्य और स्वभाव के अनुसार कर्म करना चाहिए, यही उसका धर्म है.
– नारी भी है शक्ति का स्वरूप
भगवद् गीता भले सीधे स्त्रियों पर केंद्रित न हो, लेकिन उसके उपदेशों में आत्मा को सर्वोपरि माना गया है — और आत्मा का कोई लिंग नहीं होता. इसका मतलब, स्त्री भी ब्रह्मज्ञान और मोक्ष प्राप्त कर सकती है.
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