Gita Updesh: प्रेम देना तुम्हारा धर्म है, पाना नहीं, श्रीकृष्ण से जानें सच्चे प्रेम का अर्थ
Gita Updesh: प्रेम एक नि:स्वार्थ एहसास होता है, जिसमें व्यक्ति अपना मैं भूलकर सिर्फ और सिर्फ खुशी ढूंढता है. हालांकि, आजकल लोग प्रेम को अधिकार की तरह समझते हैं. वे सोचते हैं कि जिसे हम चाहते हैं उसे पाना उनका अधिकार होता है.
By Shashank Baranwal | April 7, 2025 7:58 AM
Gita Updesh: श्रीमद्भगवद्गीता में प्रेम का एक अनमोल सत्य सिखाती है. प्रेम की परिभाषा समझना हो तो श्रीकृष्ण की बातों को समझना बहुत जरूरी होता है. वे कहते हैं कि सच्चा प्रेम किसी को भूलकर किसी और में समा जाने का नाम होता है. ये कोई सौदा नहीं होता है कि प्रेम के बदले प्रेम मिले. लेन-देन सिर्फ व्यापार में ही संभव होता है. प्रेम एक नि:स्वार्थ एहसास होता है, जिसमें व्यक्ति अपना मैं भूलकर सिर्फ और सिर्फ खुशी ढूंढता है. हालांकि, आजकल लोग प्रेम को अधिकार की तरह समझते हैं. वे सोचते हैं कि जिसे हम चाहते हैं उसे पाना उनका अधिकार होता है. लेकिन गीता में कहा गया है कि सच्चा प्रेम वह जिसमें मांगा नहीं जाता है, बस दूसरे को दिया जाता है. सच्चे प्रेम में कुछ पाने की इच्छा के बजाय सिर्फ त्याग और समर्पण की भावना होती है.
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में बताया है कि अगर आपके लाख कोशिशों के बाद प्रेम नहीं मिलती है, तो प्रेम भावना को भगवान के चरणों में समर्पित कर दो, क्योंकि ऐसी स्थिति में वो प्रेम खोया नहीं रहता है, बल्कि सिर्फ उसकी दिशा बदल जाती है. यही प्रेम अब भगवान से जुड़ने का एक पुल बन जाता है.
गीता उपदेश में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो ब्रह्म में स्थित हो गया है, वह न तो शोक करता है और न ही कुछ चाहने की इच्छा होती है. कहने का मतलब यह है कि जब व्यक्ति खुद प्रेम बन जाता है, तो उसके किसी से प्रेम पाने की आवश्यकता नहीं होती है. उसका अस्तित्व ही प्रेम बन जाता है.
श्रीमद्भगवद्गीता में बताया गया है कि प्रेम के बदले में कुछ पाने की इच्छा नहीं रखनी चाहिए. आपके अधिकार में सिर्फ नि:स्वार्थ भाव से प्रेम करना हो सकता है. इसके बदले किसी भी चीज की पाने की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए. ऐसा प्रेम सिर्फ और सिर्फ पवित्र और आत्मिक हो सकता है.