खुद को जानने से ही होती है रिश्तों की शुरुआत
हर रिश्ते की मजबूत नींव खुद की पहचान से बनती है. भगवद गीता हमें सिखाती है कि जब तक हम अपनी चाहत, डर, सामर्थ्य और कमजोरियों को नहीं पहचानते, तब तक किसी और से सही संबंध नहीं बना सकते. आत्म-जागरूकता ही वह आईना है जिसमें झांककर हम दूसरों से जुड़े रिश्तों को बेहतर बना सकते हैं.
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मोह की बेड़ियों से रिश्ता बनता है बोझ
जब हम किसी से जरूरत से ज्यादा जुड़ जाते हैं, तो वह लगाव धीरे-धीरे बंधन में बदलने लगता है. श्रीकृष्ण कहते हैं कि अत्यधिक मोह रिश्तों में घुटन और खटास ला सकता है. इसलिए यदि आप चाहते हैं कि आपका संबंध सहज और स्वस्थ बना रहे, तो आपमें सामने वाले के प्रति निस्वार्थता का भाव और स्वतंत्रता देना जरूरी है.
प्रेम में सम्मान है सबसे बड़ी नींव
सिर्फ प्यार ही काफी नहीं होता, उसे टिकाए रखने के लिए सम्मान जरूरी है. गीता का संदेश है कि यदि आप अपने जीवनसाथी या प्रेमी से सच्चा रिश्ता निभाना चाहते हैं, तो सबसे पहले उन्हें मान देना सीखें. क्योंकि जहां सम्मान घटता है, वहां प्रेम भी धीरे-धीरे दम तोड़ने लगता है. एक-दूसरे की भावनाओं की कद्र कर आपके रिश्ते को लंबे लसमय तक जीवित रखता है.
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