Ashu Kumar Das
जितिया के नहाय-खाय से इसकी शुरुआत कर दी.बहुत छोटी उम्र से मां को जितिया (जिउतिया). यानी जीवितपुत्रिका व्रत .करते हुए देखा है. बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में मनाया जाने वाला यह त्योहार कई मायनों में बहुत खास हैं. जहां सारे व्रत और पूजा को करने से पहले एक दिन पहले मांसाहार, लहसुन और प्याज को त्याग दिया जाता है. वहीं, इस जितिया व्रत को करने से पहले मडु़आ की रोटी, माछ और कई तरह के पारंपरिक पकवान खाए जाते हैं. नहाय-खाय के बाद 24 से 36 घंटों का निर्जल व्रत खत्म होने के बाद पारण भी एक खास तरह के साग से होता है. ये साग है नोनी का साग.
पहले बिहार, झारखंड और उड़ीसा में ही उपलब्ध था, लेकिन आसानी से उगने की वजह से आज दिल्ली-नोएडा जैसे क्षेत्रों में यह किचन गार्डन में भी मौजूद है. जब हम लोग दिल्ली में शिफ्ट हुए थे तब मां ने पुरानी बाल्टी में नोनी साग की कुछ जड़ें डाल थीं . आज 25 साल से ज्यादा का समय बीत चुका है हमारे घर में नोनी के साग की कमी नहीं हुई है. मां कहती हैं जितिया का पारण बिना नोनी साग के हो ही नहीं सकता है. पहले मुझको यह साग बिल्कुल भी पसंद नहीं था, लेकिन इसके फायदों के बारे में जानने के बाद यह मेरा फेवरेट बन चुका है.
नोनी साग में फ्लेवनॉयड्स, प्रोटीन, सेपोनिन, विटामिन ए, विटामिन बी, विटामिन सी, विटामिन डी और विटामिन ई जैसे पोषक तत्व पाए जाते हैं, जो सेहत के लिहाज से बहुत फायदेमंद है. जो लोग ब्लड प्रेशर के मरीज हैं उनके लिए यह साग किसी वरदान से कम नहीं है. तो बताइए आप इस साग को अपनी थाली का हिस्सा कब बना रहे हैं.
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