Shaheed Diwas: अंग्रेजों के खिलाफ चल रहे स्वतंत्रता आंदोलन को गति देने के लिए क्रांतिकारियों ने काकोरी कांड को अंजाम दिया था, इस मामले में राम प्रसाद बिस्मिल (ram prasad bismil), अशफाक उल्ला खां (Ashfaq Ullah Khan), ठाकुर रोशन सिंह (Thakur Roshan Singh) और राजेंद्र लाहिड़ी को फांसी की सजा सुनाई गई थी. बिस्मिल, अशफाक और रोशन सिंह को 19 दिसंबर 1927 को फांसी दी गई लेकिन वह भी अलग अलग जगहों पर. 19 दिसंबर को देश में शहादत दिवस मनाया जाता है. इस दिन का ऐतिहासिक और देशप्रेम के लिहाज से बहुत महत्व है.
राजेंद्र लाहिड़ी को हुई थी 17 दिसंबर को फांसी
क्रांतिकारी राजेंद्र लाहिड़ी को भी 19 दिसंबर को ही फांसी दी जानी थी, लेकिन जनता के विद्रोह को देखते हुए राजेंद्र लाहिड़ी को गोंडा जेल में इसी तरह दो दिन पहले यानी 17 दिसंबर को फांसी पर चढ़ा दिया गया था.
फांसी के लिए तीन अलग- अलग जेल चुनी गई थीं
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अशफाक उल्ला खां को 19 दिसंबर 1927 को गोरखपुर जेल में फांसी की सजा दी गई थी.
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पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को फैजाबाद जेल में फांसी की सजा दी गई थी.
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ठाकुर रोशन सिंह को इलाहाबाद जेल में फांसी दी गई थी.
काकोरी कांड ने गोरी सरकार को हिला कर रख दिया था
काकाकोर कांड को अंजाम देने के कारण आजादी के इन मतवालों को सूली पर चढ़ाया गया था. वो 9 अगस्त 1925 की रात थी जब चंद्रशेखर आजाद, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, राजेंद्र लाहिड़ी और रोशन सिंह समेत तमाम क्रांतिकारियों ने लखनऊ से कुछ दूरी पर काकोरी और आलमनगर के बीच ट्रेन में ले जाए जा रहे सरकारी खजाने को लूट लिया था. इतिहास में काकोरी कांड के नाम से दर्ज इस घटना ने गोरी सरकार को हिला कर रख दिया था. वहीं खजाना लूटे जाने के बाद चंद्रशेखर आजाद पुलिस के हाथ नहीं लगे थे लेकिन राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी और रोशन सिंह पुलिस के चंगुल में फंस गए. बाद में अंग्रेजी सरकार ने मुकदमा चलाकर देश के इन महान क्रांतिकारियों को सूली पर चढ़ा दिया था.