कटक में नेताजी का पुश्तैनी घर-जानकीनाथ भवन है, लेकिन साल 2004 में इसे एक संग्रहालय के रूप में तब्दील कर दिया गया. नेताजी ने अपना अधिकांश बचपन इसी घर में बिताया था. यहां सुभाष चंद्र बोस के सारे सामान रखे हुए हैं. उनके घर के लिविंग रूम को गैलरी में तब्दील कर दिया गया है और उनकी निजी चीजों से लेकर अन्य सामान को यहां प्रदर्शित किया गया है. इस गैलरी में नेताजी के लिखे हुए पत्र भी मौजूद हैं, जो कभी उन्होंने अपने परिजनों को लिखे थे. इसके अलावा इस संग्रहालय में एक घोड़ा गाड़ी भी है, जिसका इस्तेमाल उनके परिवार के लोग करते थे.
दार्जिलिंग के कुर्सियांग में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बड़े भाई शरत चंद्र बोस का आवास है. यह ऐतिहासिक भवन नेताजी की कई यादों को समेटे हुए है. इसी भवन में करीब सात महीने के लिए नेताजी को नजरबंद कर रखा गया था. इस भवन में नेताजी द्वारा लिखी गयीं चिट्ठियां, स्मृति चिह्न और तस्वीरें मौजूद हैं. नेताजी इंस्टीट्यूट फॉर एशियन स्टडीज ने अब इसे नेताजी संग्रहालय व हिमालयी भाषाओं, समाज और संस्कृति के अध्ययन केंद्र में तब्दील कर दिया है.
नेताजी भवन लाला लाजपत राय सरानी (पहले एल्गिन रोड) पर स्थित है. कभी यह घर कोलकाता में नेताजी का निवास हुआ करता था, लेकिन अब इसे नेताजी और उनके योगदान को समर्पित एक स्मारक और अनुसंधान केंद्र के रूप में उपयोग किया जाता है. इसका स्वामित्व और प्रबंधन का जिम्मा नेताजी अनुसंधान ब्यूरो के पास है. यहां आज भी वह कार मौजूद है, जिसमें बैठकर नेताजी अपने घर से नजरबंदी के दौरान अंग्रेजों को चकमा देकर निकले थे.
मणिपुर स्थित मोइरांग आजाद हिंद फौज स्मारक और संग्रहालय मूल रूप से सिंगापुर में निर्मित आइएनए युद्ध स्मारक की प्रतिमूर्ति है. इस संग्रहालय में कई हथियार, गोला-बारूद, संगीनें, हेलमेट्स और आजाद हिंद फौज के सैनिकों द्वारा उपयोग किये जाने वाले अन्य सामग्रियों का एक अच्छा संग्रह है. यहीं पर नेताजी ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पहली बार आजाद हिंद फौज के कमांडर इन चीफ के रूप में तिरंगा फहराया था.
स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय यानी क्रांति मंदिर लाल किला परिसर में स्थित है. इस संग्रहालय में नेताजी के जीवन और आजाद हिंद फौज के इतिहास से जुड़े कई दस्तावेज मौजूद हैं. यह संग्रहालय उन आइएनए नायकों को समर्पित है, जिन्हें ऐतिहासिक आइएनए प्रशिक्षण के दौरान इस स्थान पर हिरासत में लिया गया था. यहां नेताजी से जुड़ी कई स्मृतियां मौजूद हैं.
पडांग भारत के इतिहास में अनगिनत आयोजनों से जुड़ा रहा है. इसी जगह से नेताजी ने वर्ष 1943 में ‘चलो दिल्ली’ का नारा दिया था. पिछले साल सिंगापुर सरकार ने 57वां राष्ट्रीय दिवस पर इसे राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया था. सिंगापुर में भारतीय समुदाय के लिए पडांग का विशेष महत्व है, क्योंकि यहीं भारतीय सिपाहियों ने सबसे पहले अपने शिविर स्थापित किये थे, जब अंग्रेजों ने अपनी चौकी स्थापित की थी. यह पडांग ही था, जहां नेताजी ने उन्होंने ‘झांसी की रानी’रेजीमेंट की स्थापना की थी व आइएनए सैनिकों के लिए कई भाषण दिये थे.
रेंको जी मंदिर जापान के मशहूर पर्यटन स्थल में से एक है. यह मंदिर जापान की राजधानी टोक्यो में स्थित है. दावा किया जाता है कि इसी मंदिर में नेताजी की अस्थियां रखी हुई हैं. हर साल इस मंदिर को 14 अगस्त को आम जनता के लिए खोला जाता है. 9 दिसंबर, 2001 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी इस मंदिर में आये थे. मंदिर में सुभाष चंद्र बोस की एक प्रतिमा भी लगी हुई है.
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