Parenting Tips: ‘ना’ सुनते ही बच्चा करने लगे Emotional Blackmail? इन 5 आदतों को तुरंत बदलें, वरना भारी पड़ेगा

Parenting Tips: बच्चों की परवरिश आज की दुनिया में जितनी चुनौतीपूर्ण है, उतनी ही संवेदनशील भी. आजकल कई पैरेंट्स यह शिकायत करते हैं कि उनका बच्चा 'ना' सुनते ही रोने, चिल्लाने या जिद करने लगता है. अगर आपके साथ भी ऐसा होता है, तो जरूरी है कि आप बच्चे की बजाय अपनी कुछ पैरेंटिंग आदतों पर नजर डालें. विशेषज्ञों की मानें तो जब पैरेंट्स हर समय बच्चे की हर छोटी-बड़ी मांग को तुरंत मान लेते हैं, तो बच्चा धीरे-धीरे ‘ना’ को अस्वीकार करने लगता है. यही वजह है कि जैसे ही उसकी कोई इच्छा पूरी नहीं होती, वह इमोशनल रिएक्शन देने लगता है.

By Sameer Oraon | August 3, 2025 8:52 PM
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Parenting Tips For Kids: बच्चों की परवरिश आज की दुनिया में जितनी चुनौतीपूर्ण है, उतनी ही संवेदनशील भी. आजकल कई पैरेंट्स यह शिकायत करते हैं कि उनका बच्चा ‘ना’ सुनते ही रोने, चिल्लाने या जिद करने लगता है. अगर आपके साथ भी ऐसा होता है, तो जरूरी है कि आप बच्चे की बजाय अपनी कुछ पैरेंटिंग आदतों पर नजर डालें. विशेषज्ञों की मानें तो जब पैरेंट्स हर समय बच्चे की हर छोटी-बड़ी मांग को तुरंत मान लेते हैं, तो बच्चा धीरे-धीरे ‘ना’ को अस्वीकार करने लगता है. यही वजह है कि जैसे ही उसकी कोई इच्छा पूरी नहीं होती, वह इमोशनल रिएक्शन देने लगता है.

हर मांग को तुरंत पूरा करना

कई बार हम बच्चे के रोने या जिद करने पर तुरंत उसकी मांग मान लेते हैं ताकि वह शांत हो जाए. इससे वह सीखता है कि रोकर या गुस्साकर वह कुछ भी हासिल कर सकता है. इससे उसकी सहनशीलता कम हो जाती है.

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‘ना’ कहने में असहज महसूस करना

बहुत से माता-पिता ‘ना’ कहने में खुद को दोषी महसूस करते हैं, लेकिन सीमाएं तय करना पैरेंटिंग का जरूरी हिस्सा है. बच्चे को यह समझाना जरूरी है कि हर बात ‘हां’ नहीं हो सकती.

हर बार लॉजिक देने की जरूरत नहीं

हर बार समझाने के चक्कर में कई बार हम बच्चा समझने लायक बातों को भी जटिल बना देते हैं. कई बार सीधा और सख्त ‘नहीं’ भी पर्याप्त होता है.

इमोशन से ज्यादा व्यवहार पर ध्यान दें

बच्चे के इमोशनल ब्लैकमेल (जैसे रोना, गुस्सा करना) पर फोकस करने के बजाय, उसके व्यवहार को ठीक करने की कोशिश करें. शांत और स्थिर रहें, ताकि बच्चा समझे कि ऐसे एक्सप्रेशन से कोई फर्क नहीं पड़ता.

बॉन्डिंग के लिए गिफ्ट्स या स्क्रीन का सहारा न लें

बच्चे से जुड़ने के लिए उसके साथ समय बिताएं, बातें करें न कि स्क्रीन, खिलौनों या ट्रीट्स से रिश्ता बनाए. तभी वह ‘ना’ को बेहतर ढंग से समझना और स्वीकारना सीख पाएगा.

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