क्या आप अपनी भावनाओं को शब्दों के माध्यम से बयां कर पा रहे हैं?
कई लोग सोचते हैं कि सामने वाला उनके इशारे या चेहरे के भावों से ही सब समझ लेगा, लेकिन ऐसा अक्सर नहीं होता. रिश्ते में बातों को “क्लियर, सिंपल और डिटेल में” कहना जरूरी होता है, वरना पार्टनर कंफ्यूज हो जाता है. उदाहरण के लिए, “मुझे अच्छा नहीं लग रहा” कहने से बेहतर है कि मैं आज थक गया हूं और थोड़ा अकेला महसूस कर रहा हूं. साइकोलॉजिकल रिसर्च भी कहती है कि जितना स्पष्ट हम बोलते हैं, उतनी ही अच्छी समझ सामने वाला विकसित कर पाता है.
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क्या आप खुद भी सुनने के लिए तैयार हैं?
आपको पहले खुद सोचना होगा कि क्या आप पार्टनर की बातों को ध्यान से सुनते हैं, या सिर्फ जवाब देने के लिए सुनते हैं रिलेशनशिप्स में “एक्सप्रेस” करने से ज्यादा जरूरी “रिसीव” करना होता है. जब आप सुनने की आदत बनाते हैं, तो सामने वाला भी आपकी बातें ज्यादा गंभीरता से लेने लगता है. एक गाइडिंग थ्योरी के मुताबिक, जो पार्टनर अच्छे लिसनर होते हैं, उनके रिश्ते ज्यादा समय तक संतुलन में रहते हैं.
क्या आप सही समय पर बात करते हैं?
अक्सर लोग गुस्से, थकावट या तनाव के समय अपनी बड़ी बातें कहने लगते हैं, जिससे बात का असर उल्टा हो जाता है. एक शोध के अनुसार, जब इंसान भावनात्मक रूप से थका हो, तो उसकी समझने की क्षमता 30-40% तक घट जाती है. इसलिए जब कोई मुद्दा उठाना हो, तो यह जरूर देखें कि पार्टनर उस वक्त मानसिक रूप से उपलब्ध है या नहीं. समय अगर सही हो, तो बात कम शब्दों में भी समझ आ जाती है.
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