बच्चों को कैसे संभाला जाए
कई बार बच्चों के सामने बोलते रहिए वो ना सुनेंगे ना जवाब देंगे. अगर टीवी देख रहे हों या हाथ में मोबाइल हो तो फिर आप चिल्लाते रहिए. ये समस्या आजकल कई पैरेंट्स फील कर रहे हैं. ऐसे में सवाल यह कि ऐसे बच्चों को कैसे संभाला जाए? इसके लिए कुछ पैरेंटिंग टिप्स हैं जो आपकी मदद कर सकते हैं.
पेरेंटिंग का गहरा असर
दरअसल बच्चों के ऊपर मां बाप की पेरेंटिंग का एक गहरा असर होता है. बच्चे मिट्टी की तरह होते हैं, उन्हें आप जिस आकार में मोड़़ेंगे वो वैसे ही बन जायेंगे. आजकल के बच्चों में चिड़चिड़ापन और जिद्दी नेचर के कई मामले देखे जा रहे हैं . कई बार तो ऐसा भी होता है कि बच्चे ज़िद में आकर ऐसा व्यवहार करने लगते हैं जिससे माता- पिता को बेहद ही शर्मिंदगी का भी सामना करना पड़ता है. ऐसे में बच्चों के माता पिता की परवरिश भर भी लोग सवाल उठाते हैं. ऐसे में जानिए कैसे आप अपने बच्चों को संभाल सकते हैं.
बातचीत को बढ़ाएं
आप कितने भी बिजी क्यों ना रहते हों, बच्चों के साथ बातचीत करने का भी टाइम निकालें. अपने बच्चों के साथ कम्युनिकेशन बढ़ाएं, करने से बच्चे आपके साथ खुलते हैं और आप से अपने दिल की हर बात बताते हैं. अच्छे कम्युनिकेशन से बच्चों को भी अच्छा महसूस होता है.
बच्चों को उनकी सीमा समझाएं
बच्चों पर उनकी सीमाओं को समझाओं . इसे लेकर उन्हें प्यार से उनकी लिमिट्स की अच्छी तरह से जानकारी दें और उन्हें सिखाएं कि उन्हें इन लिमिट्स से डरना या झुंझलाना नहीं है बल्कि इसे माता पिता की सीख समझकर उनका पालन करना है.
बच्चों से खुलकर बातचीत करें
बच्चों से खुलकर बात करें. कई बार पैरेंट्स अपने बच्चों से अपनी भावनाएं शेयर नहीं करते. ना ही बच्च अपनी मन की बात कह पाते हैं. अगर आपके बच्चे बातों को समझते हैं तो उनसे खुलकर बातचीत करें. अगर बच्चा किसी महंगी चीज की जिद पर अड़ा है तो उसे मौजूदा परिस्थितियों की पूरी जानकारी दें ना कि महत्वाकांक्षाओं को कुंठा में बदलने दें. ऐसे में बच्चे अपने माता पिता से ज्यादा इमोशनली कनेक्ट कर पाएंगे.
उन्हें बचपन से ही सही गलत से रूबरू कराएं
चाहे उम्र कितनी भी छोटी हो लेकिन सही गलत की सीख इंसान में हमेशा होनी चाहिए. अपने बच्चों को छोटी उम्र से ही सही गलत का फर्क समझाएं और उनकी गलत ज़िद को कभी पूरी न करें.
बच्चों की ज़िद को तुरंत न मानें
अक्सर लोग अपने बच्चों के मोह में आकर उनके ज़िद को फौरन पूरा कर देते हैं . ऐसे में जब वो बाद में कोई ज़िद पूरी न कर पाएं या उसमे असमर्थ हो जाएं तो बच्चों के दिल में नकारात्मकता भर जाती है. इसलिए बच्चों की ज़िद को फौरन न पूरा करें.
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