अरविंद जयतिलक
स्वतंत्र टिप्पणीकार
रेलवे को सुधार की पटरी पर दौड़ाने और रेलवे बोर्ड के पुनर्गठन के लिए गठित अर्थशास्त्री डॉ विवेक देबरॉय की अध्यक्षतावाली समिति ने अपनी अंतिम रिपोर्ट रेल मंत्रलय को सौंप दी है. समिति ने अपनी रिपोर्ट में रेलवे के परिचालन और उत्पादन के क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने की सिफारिश के साथ ही रेलवे को प्रतिस्पद्र्धी बनाने की संस्तुति की है.
समिति ने ढेरों उपाय सुझाये हैं- मजबूत नियामक तंत्र स्थापित करने, प्राइवेट ट्रेनों का परिचालन करने, इंडियन मैन्यूफैरिंग कंपनी स्थापित करने, ट्रेनों की सुरक्षा की जिम्मेवारी राजकीय रेलवे पुलिस से लेकर रेलवे सुरक्षा बल के हाथ सौंपने तथा रेल संपत्ति की सुरक्षा की जिम्मेवारी निजी सुरक्षा एजेंसियों को देना आदि महत्वपूर्ण है. हालांकि, रेलवे से जुड़े कर्मचारी संगठनों ने समिति के सुझावों को कर्मचारी हितों के विरुद्ध बताया है और सरकार से अपील की है कि वह इस रिपोर्ट को लागू न करे.
रेलवे में सुधार के लिए पहले भी इस तरह की कई समितियां गठित हुईं और ढेरों उपाय सुझाये गये. अभी गत वर्ष ही परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष डॉ अनिल काकोडकर की अध्यक्षता में गठित समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंपी, जिसमें 106 अहम सुझाव दिये गये. विवेक देबरॉय और काकोडकर समिति से पहले भी रेलवे में सुधार और संरक्षा को लेकर कई समितियां बनीं, जैसे 1962 में गठित कुंजरू समिति, 1968 में बांचू समिति, 1978 में सीकरी समिति और 1998 में खन्ना समिति.
इन समितियों ने दुर्घटना की मुख्य वजह शार्ट सर्किट, असुरक्षित क्रॉसिंग, ट्रेन का पटरी से उतरना, स्टाफ की विफलता, उपकरणों में खामियां और टक्कर एवं तोड़फोड़ को रेलवे की दुर्दशा के लिए जिम्मेवार माना और मजबूत पटरियां बिछाने, पुराने पड़ चुके रेल इंजन व वैगन को बदलने, सिगAल प्रणाली को नयी तकनीकी से जोड़ने का सुझाव दिया.
इसके अलावा कलपुजरे की खरीद और उनकी गुणवत्ता में सुधार के साथ सैकड़ों साल पुराने पड़ चुके रेलवे पुलों के नवनिर्माण तथा 12,000 से अधिक रेलवे क्रासिंगों पर चौकादारों की नियुक्ति को जरूरी बताया है. लेकिन, धन के अभाव में समितियों के ज्यादातर सुझावों पर अमल नहीं हुआ. नतीजा सामने है.
हर दो-चार महीने बाद भीषण रेल दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ रहा है. हर हादसे के बाद रेल तंत्र द्वारा ट्रेन प्रोटेक्शन एंड वार्निग सिस्टम को लागू करने की बात कही जाती है, लेकिन ट्रायल होने के बावजूद इसे लागू नहीं किया गया. गौर करें तो पिछले कुछ वर्षो से ट्रेनों में आग लगने की घटनाओं में इजाफा हुआ है, लेकिन इसे गंभीरता से नहीं लिया जा रहा. अब तक सिर्फ राजधानी और शताब्दी ट्रेनों में ही आग बुझाने का इंतजाम है. रेलवे में बढ़ती असुरक्षा व अपराध को रोकने के लिए सुरक्षाकर्मियों की भारी कमी है.
फिलहाल सात हजार ट्रेन भगवान भरोसे हैं और सिर्फ 3,475 ट्रेनों में ही सुरक्षा गार्ड हैं. भारतीय रेल एशिया का सबसे बड़ा और एक प्रबंधन के तहत दुनिया का सबसे बड़ा नेटवर्क है. इसे सुरक्षा और सुविधाओं से लैस करना होगा. अच्छी बात है कि केंद्र सरकार इस दिशा में काम करने का संकल्प ले चुकी है.