– बैंगन को अशुद्ध माना गया है
हिन्दू धर्म में बैंगन को कई अवसरों पर अशुद्ध या अपवित्र माना गया है. विशेषकर व्रत, उपवास या धार्मिक अनुष्ठानों में इसका प्रयोग वर्जित है. नौतपा में जब शरीर और वातावरण दोनों ही शुद्धता की मांग करते हैं, तब बैंगन का सेवन धार्मिक दृष्टि से अनुचित माना गया है.
– बैंगन की तासीर गर्म होती है
बैंगन की प्रकृति गर्म होती है, जो नौतपा की भीषण गर्मी के साथ मिलकर शरीर में असंतुलन उत्पन्न कर सकती है. आयुर्वेद के अनुसार, गर्म प्रकृति का भोजन इन दिनों पित्त दोष बढ़ाता है, जिससे त्वचा रोग, पेट की समस्या और चिड़चिड़ापन हो सकता है. इसलिए धार्मिक रूप से भी इसे वर्जित किया गया है.
– पवित्रता और सात्विकता बनाए रखने के लिए
नौतपा का समय आत्म-संयम, साधना और सात्विकता को अपनाने का होता है. बैंगन को तामसिक भोजन की श्रेणी में रखा गया है, जो मन को चंचल और अस्थिर करता है. इस अवधि में साधना में मन को स्थिर और शांत रखने के लिए बैंगन जैसे तामसिक आहार से दूर रहना आवश्यक होता है.
– देवी-देवताओं को नहीं चढ़ाया जाता बैंगन
बैंगन को किसी भी देवी-देवता की पूजा में अर्पित नहीं किया जाता. विशेष रूप से सूर्य देव की उपासना में इस समय शुद्ध और सात्विक भोग अर्पित किया जाता है. इस कारण से भी नौतपा के दौरान बैंगन का त्याग करना धार्मिक मर्यादा का पालन माना गया है.
– शारीरिक और मानसिक शुद्धि के लिए उपयुक्त आहार
नौतपा का समय तप और त्याग का प्रतीक है. इन दिनों हल्का, पचने में आसान और ठंडक देने वाला भोजन करने की सलाह दी जाती है. इससे शरीर शुद्ध होता है और मन भी शांत रहता है. बैंगन का त्याग कर व्यक्ति इस धार्मिक तपस्या को पूर्णता प्रदान कर सकता है.
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नौतपा का समय केवल मौसम का परिवर्तन नहीं, बल्कि शरीर और आत्मा की शुद्धि का अवसर है. इन नौ दिनों में बैंगन जैसे तामसिक आहार से बचकर हम न केवल धार्मिक नियमों का पालन कर सकते हैं, बल्कि अपने स्वास्थ्य को भी बेहतर बना सकते हैं.