Premanand Ji Maharaj Tips : प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार, मासिक धर्म एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जिसे किसी भी प्रकार का दोष नहीं माना जाना चाहिए. उन्होंने इस विषय पर सामाजिक भ्रांतियों को दूर करने का प्रयास किया है. उनके अनुसार, धर्म और आस्था किसी शारीरिक स्थिति से नहीं बंधी होती. इस विचार से महिलाओं को आत्मसम्मान और धार्मिक स्वतंत्रता का संदेश मिलता है:-
– माहवारी और शास्त्रों का दृष्टिकोण
हिंदू धर्म में मासिक धर्म को एक प्राकृतिक और शारीरिक प्रक्रिया माना गया है, जो स्त्री की रचना और सृष्टि के चक्र का एक भाग है. किंतु शास्त्रों में माहवारी के समय स्त्री को विश्राम, शारीरिक शुद्धि और मानसिक शांति का अवसर प्रदान करने हेतु कुछ धार्मिक कार्यों से दूर रहने की सलाह दी गई है. विशेषतः मंदिर जाना, पूजा-पाठ करना या किसी भी प्रकार के शुद्ध कार्य में सम्मिलित होना, इस अवधि में वर्जित माना गया है. यह निषेध अपवित्रता नहीं, बल्कि ऊर्जा संतुलन और नियमों का हिस्सा है.
– प्रेमानंद जी महाराज का दृष्टिकोण
प्रेमानंद जी महाराज, जो श्रीराम कथा और सनातन धर्म के सिद्धांतों के ज्ञाता हैं, इस विषय में स्पष्ट रूप से मार्गदर्शन देते हैं कि माहवारी कोई पाप नहीं, बल्कि प्रकृति की देन है. परंतु धर्मशास्त्रों द्वारा निर्धारित नियमों का पालन आवश्यक है. महाराज श्री के अनुसार, मंदिर एक अत्यंत पवित्र स्थान होता है जहाँ दिव्य ऊर्जा का वास होता है. ऐसे में जब स्त्री रजस्वला अवस्था में होती है, तो उसकी ऊर्जा असंतुलित होती है, इसलिए उसे मंदिर न जाने का नियम बताया गया है.
– मंदिर प्रवेश क्यों वर्जित है?
धार्मिक शास्त्रों में वर्णित है कि माहवारी के दौरान शरीर की प्राकृति और ऊर्जा स्तर भिन्न होता है. यह अवस्था स्त्री के लिए विश्राम की है, न कि उपासना या बाह्य धार्मिक क्रियाओं में भाग लेने की. प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि मंदिर जाने से मना किया गया है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि स्त्री अपवित्र हो गई है. बल्कि यह एक सत्कल्प है जिससे वह इस दौरान मानसिक और शारीरिक रूप से विश्राम कर सके.
– पूजा-पाठ और भगवान का स्मरण
हालांकि मंदिर में प्रवेश वर्जित है, परंतु प्रेमानंद जी महाराज यह भी स्पष्ट करते हैं कि भगवान का नाम लेना, मन में प्रार्थना करना या साधारण भक्ति करना इस समय में वर्जित नहीं है. भगवान अपने भक्त की भावना को अधिक महत्व देते हैं, न कि उसकी शारीरिक स्थिति को. अतः मन में प्रेम, श्रद्धा और विश्वास हो तो स्त्री इस अवस्था में भी प्रभु का स्मरण कर सकती है.
– समाज में जागरूकता और मर्यादा का संतुलन
प्रेमानंद जी महाराज युवाओं और समाज को यही सिखाते हैं कि किसी भी धार्मिक नियम को अंधविश्वास या हीनता की दृष्टि से नहीं देखना चाहिए. यह नियम स्त्री की गरिमा, मर्यादा और स्वास्थ्य की रक्षा हेतु बनाए गए हैं. मंदिर न जाना कोई तिरस्कार नहीं, बल्कि धर्म की मर्यादा का पालन है. अतः प्रेमानंद जी का संदेश यही है कि हम धर्म के नियमों का पालन श्रद्धा से करें, न कि भय या उपेक्षा से.
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मासिक धर्म में मंदिर न जाना एक धार्मिक अनुशासन है जिसे प्रेमानंद जी महाराज जैसे संतों ने भी उचित बताया है — यह स्त्री के प्रति सम्मान, संवेदना और धर्मपालन का प्रतीक है.