- वर्ष 2025 में रक्षाबंधन का पर्व 9 अगस्त 2025, शनिवार को मनाया जाएगा.
– श्रावण पूर्णिमा का धार्मिक महत्व
- श्रावण मास भगवान शिव, विष्णु और श्रीकृष्ण की उपासना के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है.
- पूर्णिमा तिथि पर चंद्रमा अपनी पूर्ण शक्ति में होता है, जिससे की गई पूजा और व्रत का प्रभाव कई गुना अधिक होता है.
- इस दिन रक्षा-सूत्र बांधना शुभ और रक्षादायक माना जाता है, जिससे जीवन में संकटों से रक्षा होती है.
– रक्षाबंधन का पौराणिक इतिहास
- विष्णु पुराण में वर्णन है कि जब दैत्यराज बलि को भगवान विष्णु ने वचन दिया और बैकुंठ से दूर रहे, तब माता लक्ष्मी ने रक्षा-सूत्र बांधकर उन्हें विष्णु को लौटाने का आग्रह किया.
- महाभारत में द्रौपदी ने श्रीकृष्ण को राखी बांधी थी, जब श्रीकृष्ण की उंगली से रक्त निकला था. इसके बाद श्रीकृष्ण ने उसकी रक्षा का वचन निभाया.
– ज्योतिषीय दृष्टिकोण
- श्रावण पूर्णिमा को चंद्रमा श्रवण नक्षत्र में स्थित होता है, जो मानसिक शांति, संतुलन और शुभता का प्रतीक है.
- इस दिन राखी बांधने से भाई की कुंडली में राहु-केतु, शनि और मंगल दोषों का प्रभाव कम होता है.
- शुभ मुहूर्त में राखी बांधने से संबंधों में मधुरता और दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है.
– रक्षा-सूत्र का महत्व
- रक्षा-सूत्र केवल भाई-बहन के रिश्ते तक सीमित नहीं; इसे गुरु, यजमान, देवता और ब्राह्मणों को भी बाँधा जाता है.
- यह सूत्र एक आध्यात्मिक बंधन है जो बुराई से रक्षा और शुभता को आमंत्रित करता है.
- वेदों में इसे ‘रक्षिका’ कहा गया है, जो नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है.
– समाज और संस्कृति में रक्षाबंधन
- यह पर्व सांस्कृतिक एकता और प्रेम का प्रतीक है.
- भारत में अलग-अलग समुदायों में इसे विभिन्न नामों से मनाया जाता है, जैसे कजरी पूर्णिमा, नारियल पूर्णिमा आदि.
- रक्षाबंधन न केवल भाई-बहन बल्कि मानवता, धर्म और कर्तव्य के बंधन को भी मजबूती देता है.
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रक्षाबंधन केवल एक पारिवारिक उत्सव नहीं, बल्कि एक धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक परंपरा है जो श्रावण पूर्णिमा के विशेष योग में बांधी जाती है. यह पर्व हमें रक्षाबंध की गहराई और प्रेम की शक्ति का स्मरण कराता है, राखी का धागा केवल एक धागा नहीं, यह भावनाओं और रक्षा के संकल्प का प्रतीक है.