123 वर्ष से खगोलशास्त्र की पढ़ाई कराने वाले कॉलेज को आज भी पीजी की मान्यता नहीं

123 साल के लंबे सफर में कई ऐतिहासिक घटनाओं और बिहार की समृद्ध विरासत को सहेजे यह संस्थान बिहार व केंद्र सरकार की मदद के इंतजार में है. स्थिति यह है कि आज भी स्नातक स्तर पर बच्चों को भूगोल पढ़ने के लिए अधिक फीस देनी पड़ रही, क्योंकि यह विषय सेल्फ फाइनेंस मोड में संचालित किया जाता है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 8, 2022 6:41 AM
feature

लंगट सिंह कॉलेज में एक सदी पहले से खगोलशास्त्र पढ़ाया जा रहा है, लेकिन संस्थान पर सरकार की नजर नहीं है. 123 साल के लंबे सफर में कई ऐतिहासिक घटनाओं और बिहार की समृद्ध विरासत को सहेजे यह संस्थान बिहार व केंद्र सरकार की मदद के इंतजार में है. स्थिति यह है कि जिस कॉलेज में 1916 से खगोल शास्त्र की पढ़ाई होती हैं, वहां आज भी स्नातक स्तर पर बच्चों को भूगोल पढ़ने के लिए अधिक फीस देनी पड़ रही, क्योंकि यह विषय सेल्फ फाइनेंस मोड में संचालित किया जाता है. अन्य विषयों की तरह रेगुलर मोड में भूगोल को शामिल करने के लिए कॉलेज की ओर से कई बार सरकार को पत्र भेजा जा चुका है. वहीं भूगोल में पीजी की पढ़ाई के लिए भी कॉलेज से प्रस्ताव भेजा गया है. विश्वविद्यालय ने सिंडिकेट और सीनेट से अप्रुवल के बाद सरकार को आवेदन भेजा है, लेकिन अभी तक कोई निर्णय नहीं हो सका है. प्राचार्य प्रो आपी राय ने बताया कि स्नातक स्तर पर भूगोल को रेगुलर मोड में शामिल करने और कॉलेज में पीजी के नामांकन की अनुमति के लिए आवेदन किया गया है. वे खुद भी राजभवन व सरकार के स्तर पर पहल कर रहे हैं.

70 के दशक तक होता खगोलीय दुनिया का अध्ययन

एलएस कॉलेज में 70 के दशक तक खगोलीय दुनिया का अध्ययन होता था. 1916 में वेधशाला का निर्माण होने के बाद से ग्रह-नक्षत्रों के बारे में जानकारी सुगम हो गयी थी. हालांकि तब वेधशाला गणित विभाग के अंतर्गत काम करती थी. प्रो राय ने बताया कि खगोल शास्त्र भूगोल के साथ ही गणित और फिजिक्स का भी हिस्सा है. ऐसे में कॉलेज की वेधशाला और तारा मंडल को फिर से चालू किया जाएगा, तो हर साल हजारों छात्र लाभान्वित होंगे. मुजफ्फरपुर के साथ ही दूसरे जिले व राज्यों के विद्यार्थी भी यहां शोध के लिए आ सकेंगे.

1500 साल पहले तरेगना में आर्यभट्ट ने बनवायी थी वेधशाला

गुप्तकाल में महान खगोलविद आर्यभट्ट ने 1500 साल पहले तरेगना कस्बे में वेधशाला बनायी थी. रिकॉर्ड के अनुसार वहीं पर वे अपने शिष्यों के साथ तारों के विषय में अध्ययन करते थे. वहां 70 फुट की एक मीनार थी, जिस पर आर्यभट्ट की वेधशाला थी.

संबंधित खबर
संबंधित खबर और खबरें
होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version