दूर- दूर से घूमने आते है पर्यटक
कहा जाता है कि बेतिया शहर समय के साथ अपनी पहचान से दूर हो रहा है. हांलाकि, अभी भी यहां बेंत की खेती की जाती है. इसी के आधार पर कभी इस शहर का नाम पड़ा था. जानकारी के अनुसार सटा बैरिया प्रखंड में उदयपुर वन प्राणी आश्रययणी जंगल आज भी स्थित है. इसे पर्यटकों के लिए खुला रखा गया है. कई लोग यहां घूमने के लिए आते है. दूर – दूर से यहां लोग पहुंचते है. बड़े पैमाने पर यहां बेंत की लड़की मिलती है. इस घने से जंगल में दूर- दूर तक बेंत नजर आता है. आम तौर पर दमदली या जलजमाव वाले इलाकों में इसे उगाया जाता है.
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बड़े पैमानों पर होती है खेती
पानी अच्छी मात्रा में अगर उपलब्ध हो तो इसकी तेजी से वृद्धि होती है. बेतिया के कई इलाकों में बड़े पैमानों पर इसकी खेती की जाती है. वहीं, कई जगह पर बेंत की लकड़ी को काट भी दिया गया है. इसकी लंबी झाड़ी होती है. इसके तने काफी लचीले और मजबूत होते है. यह काफी बढ़िया होती है. कई जगह पर कलाकार इससे आभूषणों का भी निर्माण करते है. इसे उपयोग में भी लाया जाता है. गिफ्ट बास्केट, केतली, बोतल आदि का भी इससे निर्माण होता है. कई लोगों के लिए यह रोजगार का साधन भी है. यही कारण है कि इसे उगाया जाता है. बेंत से बनी चीजों की बाजार में बिक्री भी अच्छी होती है. देशभर में लोग इसे खूब पसंद करते हैं. बेंत से बनाई जाने वाली आकर्षक चीजें कई लोगों के लिए रोजगार का साधन है. गले का चेन, झुमका, ईयर रिंग जैसे तमाम आभूषण इससे बनाया जा सकता है. बेतिया शहर वनसंपदा से भरा हुआ है. यह अपने भौगोलिक विभिन्नताओं के लिए मशहूर है. यहां की जमीन उपजाऊ है. मिट्टी दलदली है. खेती के लिए इस भूमि को उपयुक्त माना जाता है. यहां फर्नीचर बनाने का काम होता है. यहां बढ़िया किस्म की बेंत मिलती है. लकड़ियों का भी व्यापाक किया जाता है. कई लोगों की आजीविका का आधार कृषि है. यह लोगों की आय का श्रोत है. माना जाता है कि साल 1627 में बेतिया शहर की उत्पति हुई थी. इसे चंपारण सरकार के नाम से भी जाना जाता था.
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