पटना. विधानसभा में गुरुवार को एक अति महत्वपूर्ण कानून पारित हुआ. बिहार सिविल न्यायालय विधेयक-2021 पर ध्वनिमत से मुहर लगी. यह पहला मौका है, जब बिहार ने सिविल कोर्ट के संचालन और प्रबंधन से संबंधित अपना कानून बनाया है.
अब तक इसके लिए अंग्रेजी हुकूमत काल वर्ष 1887 में बनाया गया बंगाल, आगरा और असम सिविल कोर्ट एक्ट ही लागू होता आ रहा था, जबकि मौजूदा समय में बिहार अन्य राज्यों से अलग होकर एक स्वतंत्र राज्य के रूप में स्थित है. फिर भी यहां के सिविल कोर्ट के लिए वही पुराना कानून लागू होता आ रहा था.
इसे 134 साल बाद बदलते हुए राज्य सरकार ने नया कानून तैयार कर पारित किया है. आजादी के 72 साल बाद पहली बार यह नया कानून लाया गया है. इस कानून को विधि विभाग के मंत्री प्रमोद कुमार ने सदन में पेश किया.
इस पर मंत्री बिजेंद्र प्रसाद यादव ने कहा कि इस ऐतिहासिक कानून को लाने और इसे सदन से पारित करने के लिए सभी सदस्यों को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बधाई देना चाहिए. सीएम की पहल पर ही राज्य को अंग्रेजों के कानून से आज मुक्ति मिली है.
कानून में यह है खास
इस नये कानून में सिविल कोर्ट (जूनियर डिविजन) में पांच लाख रुपये तक के मामले की सुनवाई हो सकेगी. इससे ऊपर और 50 लाख तक के सभी मामलों की सुनवाई सिविल कोर्ट सीनियर डिविजन में होगी. यह कानून चार तरह के न्यायालयों पर लागू होगा, जिसमें जिला कोर्ट, अपर जिला न्यायालय, सिविल कोर्ट (सीनियर डिविजन) और सिविल कोर्ट (जूनियर डिविजन) शामिल हैं.
हाइकोर्ट की सहमति से राज्य सरकार समय-समय पर जिला और सिविल जज की संख्या का निर्धारण कर सकती है. इन दोनों तरह के जज के खाली पदों को हाइकोर्ट की सहमति से राज्यपाल के आदेश पर भरा जायेगा. सभी सिविल कोर्ट का नियंत्रण जिला स्तरीय कोर्ट करेंगे और सभी जिला न्यायालयों को हाइकोर्ट नियंत्रित करेंगे.
इसके अलावा सिविल कोर्ट के गठन, संचालन, जजों की नियुक्ति एवं संख्या, कोर्ट में छुट्टियां समेत संचालन एवं प्रशासनिक व्यवस्था से संबंधित तमाम प्रावधानों का उल्लेख इस कानून में किया गया है ताकि राज्य के सिविल कोर्ट का संचालन सही तरीके से किया जा सके.
Posted by Ashish Jha
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