-जैन धर्म में स्वैच्छिक मृत्यु तक उपवास की परंपरा.
गौरतलब हो कि 2015 में राजस्थान हाइकोर्ट ने संथारा पर रोक लगा दिया था, लेकिन जैन समुदाय के विभिन्न धार्मिक संगठनों द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगा दी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संथारा जैन धर्म में एक धार्मिक प्रथा है और इसे कानूनी रूप से प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि संथारा एक धार्मिक विकल्प है और इसे आत्महत्या नहीं माना जा सकता है. तपस्वी वह महान आत्मा है, जो स्वेच्छा से शारीरिक और मानसिक कष्ट सहकर आत्मा को परम शुद्धता की ओर ले जाता है. संथारा तपस्वी की दृढ़ इच्छाशक्ति और आध्यात्मिक शक्ति को दर्शाता है.
जैन धर्म में सर्वोच्च व्रत माना जाता है संथारा
अपनी इच्छाओं पर विजय प्राप्त करना है संथारा
जब किसी व्यक्ति को लगता है कि उसकी मृत्यु का समय नजदीक है, तो वह अंत समय में अपनी इच्छाओं को वश में करके अन्न और जल का त्याग कर देता है. संथारा लेने वाला व्यक्ति धीरे-धीरे अपना भोजन कम कर देता है और एक समय बाद जल का भी त्याग कर देता है.परिवार और समाज की सहमति जरूरी
उदाहरण के तौर पर अगर एक 20 वर्ष का युवा शारीरिक या फिर मानसिक रूप से पीड़ित है, तो उसे संथारा की अनुमति मिल सकती है, लेकिन वहीं अगर कोई 90 वर्ष का वृद्ध व्यक्ति स्वस्थ है, तो उसे इसकी अनुमति नहीं मिल सकती. संथारा लेने की धार्मिक आज्ञा किसी गृहस्थ और मुनि या साधु को है. जैन धर्म के मुताबिक, जब कोई व्यक्ति गंभीर बीमारी से पीड़ित हो और उसका इलाज संभव हो, या फिर जब व्यक्ति का शरीर उसका साथ न दे, तब संथारा लिया जा सकता है. संथारा लेने के बाद भी डॉक्टरी सलाह ली जा सकती है, इससे व्रत में कोई बाधा नहीं आती.
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