ब्रजेश, भागलपुर : कभी ऐसे दिन देखने की कल्पना तक नहीं की थी, यह कहते हुए भागलपुर स्टेशन पर बीते कई सालों से कुली का काम करने वाले बेगूसराय के छोटू महतो की आंखों में आंसू छलक जाते हैं. वह बताते हैं कि पहले रोजाना औसतन सात-आठ सौ रुपए तक की कमाई हो जाती थी. उसी से आधा दर्जन लोगों का परिवार चलता था.
अब तमाम कुली बमुश्किल पेट भर रहे हैं. किसी-किसी दिन तो पानी पीकर ही सो जाना पड़ता है. कोरोना संकट के बीच भागलपुर रेलवे के कुलियों की रोजी-रोटी खतरे में हैं. रेलवे स्टेशन पर दोबारा सिगनल के हरे होने यानी, ट्रेनों की आवाजाही शुरू होने का इंतजार कर रहे हैं. अभी जितनी ट्रेनें चल रही है, उससे उन्हें दो-चार बोझा भी ढोने को नहीं मिल रहा है.
इसका एक कारण यह भी है कि बोझा की जगह ट्रॉली बैग ने ले लिया है. दिन-रात काम करने के बाद दो वक्त का सत्तू भी खाने को नहीं मिल रहा. जिस तरह से किसी एक को बोझा ढोने से मिले पैसे सभी आपस में बांट लिया करते हैं, ठीक उसी तरह से सत्तू भी बांट कर खाते-पीते नजर आ जाया करते हैं.
लाइसेंसधारी कुलियों पर बिना बिल्ला वाले हावी
ट्रेनें धीरे-धीरे पटरियों पर लौटने लगी है. इससे उनकी कमाई भी बढ़ती, मगर लाइसेंसधारी कुलियों पर बिना बिल्ला वाले कुछ ज्यादा ही हावी है. लाइसेंसधारी कुलियों की संख्या 22 है और इससे तीन गुणा ज्यादा बिना बिल्ले वाले कुली है. लाइसेंसधारी कुलियों को बोझा ढोने नहीं दिया जाता है. मारपीट करने पर उतारू हो जाते हैं. ऐसा नहीं है कि इसकी शिकायत रेलवे से नहीं की है, मगर बिना बिल्ला वाले कुलियों की संख्या ज्यादा रहने से लाइसेंसधारी कुलियों की आवजें दब जा रही है. आज की तारीख में लाइसेंसधारी कुली लाचार, वेबश और खुद को निसहाय मान लिये हैं.
12 साल संघर्ष किया, लेकिन निराशा हाथ लगी
कुलियों ने कहा कि 12 साल संघर्ष किया, मगर कोई फायदा नहीं हुआ. केवल निराशा ही हाथ लगी है. कुलियों के मुताबिक पूर्व रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव ने वर्ष 2008 में कुलियों को ग्रुप- डी कर्मचारी का दर्जा देने व 50 साल से अधिक उम्र के कुलियों के बच्चों को नौकरी में लेने का आदेश जारी किया था. आदेश पर कोई भी अमल नहीं हुआ. उनकी मांग है कि जितने पद भी चतुर्थ श्रेणी के हैं, उनमें कुलियों का समायोजन किया जाये.
छोटी सी जगह में रहते 22 कुली
लाइसेंसधारी कुलियों को स्टेशन के पूर्वी दिशा में प्लेटफॉर्म संख्या एक से सटे छोटी सी झोपड़ी में रहने दिया गया है. इसमें 22 कुली रहते हैं, जहां पांव फैलाने तक की जगह नहीं बचती. इसी में रहने, खाने से लेकर खाना बनाने का काम करता है.
दो किलो सत्तू में करना पड़ा गुजारा
कुली के लिए शुक्रवार का दिन तो ब्लैक डे रहा. दिन-रात काम करने के बाद जितने पैसे बोझा ढुलाई से मिले, उसे आपस में बांटने के बाद एक-एक की मुट्ठी में 20-20 रुपये आये. दो किलो सत्तू मंगाया और आपस में मिला कर खाया, लेकिन किसी का पेट नहीं भरा.
लाइसेंसधारी कुली
पटना के श्रवण कुमार, शंकर महतो, कंचन राय, मुकेश कुमार, नालंदा के धनंजय कुमार, उपेंद्र केवट, प्रमोद महतो, बेगूसराय के विजय पासवान, रमेश कुमार, घनश्याम कुमार, पंकज कुमार पासवान, सनोज कुमार महतो, छोटू महतो, बमबम कुमार, पंकज तांती, समस्तीपुर के इंदल यादव, राधे श्याम कुमार, भागलपुर के मांगन चौधरी, एमडी चांद, बिरजू कुमार, साहिबगंज के राजेश प्रसाद व खगड़िया के फंटूस साह हैं.
Posted by Ashish Jha
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