Litchi Of Bihar: बिहार के पूर्णिया शहर की खुश्कीबाग मंडी आधी रात में लीची के कारोबार के लिए सजती है और पूरी रात गुलजार रहती है. सुबह होते ही थोक बाजार में सन्नाटा और खुदरा बाजार आबाद हो जाता है. महज एक रात में यहां औसतन पांच लाख की लीची हाथों हाथ बिक जाती है.
कारोबारियों की मानें तो इस सीजन में औसतन 40 से 50 टन लीची यहां उतरती है. हालांकि इसके लिए किसी दसचकिया ट्रक का इस्तेमाल नहीं होता पर लीची लदी छोटी गाड़ियों की आमद रात के 11 बजे से शुरू हो जाती है. यह सिलसिला सुबह चार बजे तक लगातार जारी रहता है. यहां लीची के दो दर्जन से अधिक कारोबारी हैं जो सड़क किनारे बने अपने गोदाम में स्टॉक करते हैं और सुबह होते-होते खुदरा विक्रेताओं के हाथों थोड़ा सा मुनाफा लेकर बेच भी देते हैं.
जुटते हैं नेपाल के कारोबारी
शहर के खुश्कीबाग मंडी में सहरसा, सुपौल, मधेपुरा और अररिया जिले के साथ-साथ नेपाल के कारोबारी भी जुटते हैं. लीची के आढ़ती मो. शैफ बताते हैं कि नेपाल के खुदरा विक्रेता अमूमन हर रोज रात वाली ट्रेन से यहां पहुंच जाते हैं. यहां से वे सुबह की पहली ट्रेन पकड़कर पहले जोगबनी और फिर नेपाल के रानी बाजार और विराट नगर पहुंचते हैं.
रानी बाजार के विक्रेता मंसूर आलम ने बताया कि उनका घर जोगबनी में है पर वे नेपाल जाकर लीची बेचने का काम करते हैं. उनका कहना है कि यहां खरीदारी के भाव में वे आने-जाने का भाड़ा जोड़ कर प्रति सैकड़ा के हिसाब से बिक्री करते हैं जिसमें बहुत कम मुनाफा होता है पर रोटेशन के कारण व्यवसाय चलता रहता है. नेपाल के कारोबारी दिपेन्द्र कहते हैं कि नेपाल में लीची की डिमांड अधिक होने पर कभी-कभी दाम भी अच्छा मुनाफा दे जाता है.
थाना बिहपुर-पसराहा से लीची की आवक
खुश्कीबाग की इस फल मंडी में किसी दूसरे प्रदेश की लीची का आगमन नहीं है. मुजफ्फरपुर से भी लीची नहीं आती. फल कारोबारी बलवंत कुमार बताते हैं कि यहां नवगछिया, थाना बिहपुर, नारायणपुर, पसराहा आदि इलाकों के अलावा पूर्णिया जिले की सीमाओं से सटे बंगाल के ग्रामीण इलाकों के लीची उत्पादक सीधे पहुंचते हैं. कोई मझोले ट्रक पर तो कोई बसों की छत पर अपने गांव से खुश्कीबाग तक पहुंचता है. स्थानीय कारोबारी विजय कुमार बताते हैं कि मध्य रात्रि तक 20 से 25 लाख लीची सहज रूप से बिक जाती है.
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