उदाकिशुनगंज में 500 किसान कर रहे मखाना की खेती
जानकार बताते हैं कि शुरुआती दौर में उदाकिशुनगंज में कुछ किसानों ने प्रयोग के तौर पर गड्ढेनुमा खेतों में मखाना की खेती की. इक्के-दुक्के किसानों ने ही दूसरी जगहों से मखाना लाकर इसकी बुआई की थी. कम लागत में अच्छी-खासी आमदनी होने से किसानों का रुझान मखाना खेती की ओर बढ़ता चला गया. अब उदाकिशुनगंज अनुमंडल क्षेत्र में करीब 500 हेक्टेयर भूमि में मखाना की खेती हो रही है. इनमें अधिकांश गड्ढेनुमा बेकार पड़े खेत शामिल हैं. किसानों ने बताया कि आनेवाले समय में मखाना की खेती का रकवा और बढ़ सकता है. इसका कारण मखाना की खेती से अच्छी आमदनी है.
मिथिलांचल में पैदा होने वाले मखाना का बढ़ा दायरा
बिहार के मिथिलांचल में पैदा होनेवाला मखाना अब उदाकिशुनगंज प्रखंड क्षेत्र के सहजादपुर, नयानगर, खाड़ा, बुधमा, लश्करी समेत अन्य पंचायतों के खेतों में भी दस्तक दे दिया है. बढ़ती आबादी और घटते तालाबों और तालों की संख्या के बाद मखाना अनुसंधान संस्थान दरभंगा के कृषि वैज्ञानिकों ने ऐसी तकनीक विकसित की है, जिससे अब खेतों में भी मखाना की खेती हो रही है. सहजादपुर पंचायत के चौरी भित्ता के कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहां पर खेतों में साल भर जलजमाव रहता है. ऐसे में इन खेतों में मखाना की खेती करके दर्जनों किसान आर्थिक रूप से समृद्ध हो हो रहे हैं. राजेंद्र सिंह, विनोद मंडल सहित अन्य किसानों ने बताया कि मखाना की खेती के लिए खेत में पानी जमा होना चाहिए.
अंतरराष्ट्रीय बाजार में मखाना की बहुत ज्यादा मांग
सरकार की तरफ से भी मखाना की खेती को बढ़ावा देने के लिए काम किया जा रहा है. मखाने की देश के साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में बहुत ज्यादा मांग है. बताया जाता है कि भारत के अलावा चीन, जापान, कोरिया और रूस में मखाना की खेती की जाती है. देश में बिहार के मिथिलांचल और सीमांचल में सबसे ज्यादा मखाना की खेती की जाती है. उदाकिशुनगंज अनुमंडल में बड़ी संख्या में जो तालाब हैं, जिनमें मछली पालन होता है, वहां भी मखाना की खेती की बहुत संभावना है. मखाना की खेती की एक विशेषता यह भी है कि इसमें लागत बहुत कम आती है. इसकी खेती के लिए तालाब या ताल चाहिए या जलजमाव वाले खेत हों.
मखाना उगाने और बनाने की विधि
मखाने के फूल कमल की तरह होते हैं, जो उथले पानी वाले तालाबों में पाये जाते हैं. इसीलिए जलभराव वाले क्षेत्रों या धान के खेतों में भी इसे उगाया जा सकता है. इसकी खेती के लिए तापमान 20 से 25 डिग्री सेल्सियस तथा सापेक्षिक आर्द्रता 50 से 90 प्रतिशत होनी चाहिए. मखाने की खेती के लिए तालाब चाहिए होता है, जिसमें ढाई से तीन फीट पानी होना चाहिए. इसकी खेती में किसी भी प्रकार की खाद का इस्तेमाल नहीं किया जाता. खेती के लिए बीजों को पानी की निचली सतह पर एक से डेढ़ मीटर की दूरी पर डाला जाता है. बुवाई दिसंबर से जनवरी के बीच होती है. बुवाई के बाद पौधों को पानी में ही लगाया जाता है. इसकी पत्ती के डंठल एवं फलों पर छोटे-छोटे कांटे होते हैं. इसके पत्ते बड़े और प्लेटों की तरह गोल-गोल पानी पर तैरते रहते हैं.
जून-जुलाई में हो जाता है तैयार
अप्रैल के महीने में पौधों में फूल लगना शुरू हो जाता है. फूल बाहर नीला और अंदर से जामुनी या लाल और कमल जैसा दिखता है. फूल पौधों पर कुछ दिन तक रहते हैं. फूल के बाद कांटेदार स्पंजी फल लगते हैं, जिनमें बीज होते हैं. यह फल और बीज दोनों ही खाने योग्य होते हैं. फल गोल अंडाकार, नारंगी की तरह होते हैं और इनमें आठ से 20 तक की संख्या में कमलगट्टे से मिलते-जुलते काले रंग के बीज लगते हैं. फलों का आकार मटर के दाने के बराबर तथा इनका बाहरी आवरण कठोर होता है. जून-जुलाई के महीने में फल काटना शुरू कर दिया जाता है.
पोषक तत्वों की बदौलत बढ़ी डिमांड
मखाना में अधिक मात्रा में पोषक तत्व पाये जाने के कारण मांग बढ़ने लगी, तो खेती भी बड़े पैमाने पर होने लगी है. इसमें प्रति 100 ग्राम मखाने में 9.7 फीसद प्रोटीन, 75 फीसद कार्बोहाइड्रेट, आयरन और वसा के अलावा 382 किलो कैलोरी मिलती है. इसमें दूध और अंडे के मुकाबले ज्यादा प्रोटीन पाया जाता है.
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