Exclusive: अब शाही लीची के शहद से भी मिलेगी मुजफ्फरपुर को पहचान, करीब 700 टन से अधिक शहद का होगा उत्पादन

Exclusive: अब शाही लीची के शहद से भी मुजफ्फरपुर को पहचान मिलेगी. इस साल करीब 700 टन से अधिक शहद का उत्पादन करने की तैयारी चल रही है. अप्रैल के अंत तक मधुमक्खी पालक यहां से तीन बार लीची का शहद निकालेंगे.

By Radheshyam Kushwaha | April 10, 2025 8:22 PM
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Exclusive: विनय कुमार/ मुजफ्फरपुर. शाही लीची के बाद अब शाही लीची के शहद से भी मुजफ्फरपुर को पहचान मिलेगी. राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के अनुसार जिले में 12 हजार हेक्टेयर जमीन पर लीची की खेती होती है. यहां करीब छह हजार लीची के बाग हैं. जिसमें 60 फीसदी बागों में इस बार मधुमक्खी का बक्सा लगाया गया है. मार्च में लगाये गये बक्से से शहद का उत्पादन किया जा रहा है. अप्रैल के अंत तक मधुमक्खी पालक यहां से तीन बार लीची का शहद निकालेंगे. लीची किसानों के अनुसार इस बार जिले में इस बार 700 टन से अधिक शाही लीची का शहद उत्पादित होगा. जिले में कटहल, नींबू, फूल, आम, सरसो सहित अन्य खेतों में मधुमक्खी बक्सा लगा कर एक साल में करीब दो हजार टन शहद का उत्पादन होता है, लेकिन इस बार लीची का शहद अधिक मात्रा में मधुमक्खी पालकों को मिल रहा है. इसकी आपूर्ति लीची की फसल के साथ ही देश के विभिन्न राज्यों में की जायेगी.

शहद के उत्पादन से जुड़े करीब तीन हजार किसान

शाही लीची के शहद के उत्पादन से करीब तीन हजार किसान जुड़े हुए हैं, जिसमें मधुमक्खी पालन से लेकर शहद का प्रोसेसिंग भी शामिल है. इस बार लीची किसानों को शाही लीची के शहद से दोहरा लाभ मिलने वाला है. अधिकतर लीची बागों में मधुमक्खी का बक्सा लगाये जाने के कारण लीची का शहद अधिक मात्रा में उत्पादित हो रहा है. किसान मधुमक्खी पालन को लीची की खेती के साथ जोड़कर अतिरिक्त आय प्राप्त कर रहे हैं. खासकर मार्च और अप्रैल के महीने में जब लीची के पेड़ों पर फूल आते हैं तो शहद के उत्पादन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है.

राष्ट्रीय लीची अनुसंधान की पहल से बढ़ा उत्पादन

राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड और राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र की पहल से इस बार जिले में शाही लीची के शहद का उत्पादन अधिक हुआ है. दोनों संस्थाओं की ओर से जनवरी से ही किसानों और मधुमक्खी पालकों को शाही लीची के शहद उत्पादन का प्रशिक्षण दिया गया था, जिसमें नये मधुमक्खी पालकों के अलावा काफी किसान जुड़े थे. विभिन्न वर्ग समूह में प्रशिक्षित होने के बाद किसानों ने मार्च की शुरुआत में ही बागों में लीची का बॉक्स लगाया. जिससे शहद की उत्पादकता बढ़ी. राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक विकास दास ने कहा कि केंद्र में विभिन्न समूह बनाकर किसानों को शहद उत्पादन का प्रशिक्षण दिया गया था, जिससे किसानों को काफी फायदा हुआ.

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