इस साल 700 टन से अधिक लीची के शहद का उत्पादन होने का अनुमान लीची के साथ ही दूसरे राज्यों में भी होगी शहद की आपूर्ति उपमुख्य संवाददाता, मुजफ्फरपुर शाही लीची के बाद अब मुजफ्फरपुर को शाही लीची के शहद से भी नयी पहचान मिलेगी. राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के अनुसार, जिले में 12 हजार हेक्टेयर में लीची की खेती होती है और लगभग छह हजार लीची के बाग हैं. इस बार इनमें से 60 फीसदी बागों में मधुमक्खी के बक्से लगाये गये हैं. मार्च में लगाए गए इन बक्सों से शहद का उत्पादन जारी है और मधुमक्खी पालक अप्रैल के अंत तक यहां से तीन बार लीची का शहद निकालेंगे. लीची किसानों के अनुसार, इस बार जिले में 700 टन से अधिक शाही लीची के शहद का उत्पादन होने का अनुमान है. जिले में कटहल, नींबू, फूल, आम, सरसों सहित अन्य खेतों में मधुमक्खी के बक्से लगाकर एक साल में लगभग दो हजार टन शहद का उत्पादन होता है, लेकिन इस बार लीची के शहद की मात्रा मधुमक्खी पालकों को अधिक मिल रही है. इस शहद की आपूर्ति लीची की फसल के साथ ही देश के विभिन्न राज्यों में की जायेगी. शहद उत्पादन से जुड़े हैं करीब तीन हजार किसान शाही लीची के शहद के उत्पादन से मधुमक्खी पालन से लेकर शहद की प्रोसेसिंग तक करीब तीन हजार किसान जुड़े हुए हैं. इस बार लीची किसानों को शाही लीची के शहद से दोहरा लाभ मिलने वाला है. अधिकांश लीची बागों में मधुमक्खी के बक्से लगाये जाने के कारण लीची का शहद अधिक मात्रा में उत्पादित हो रहा है. किसान मधुमक्खी पालन को लीची की खेती के साथ जोड़कर अतिरिक्त आय प्राप्त कर रहे हैं. खासकर मार्च और अप्रैल के महीने में जब लीची के पेड़ों पर फूल आते हैं, तो शहद के उत्पादन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है. राष्ट्रीय लीची अनुसंधान की पहल से बढ़ा उत्पादन राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड और राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र की पहल से इस बार जिले में शाही लीची के शहद का उत्पादन अधिक हुआ है. दोनों संस्थाओं की ओर से जनवरी से ही किसानों और मधुमक्खी पालकों को शाही लीची के शहद उत्पादन का प्रशिक्षण दिया गया था, जिसमें नए मधुमक्खी पालकों के अलावा काफी किसान शामिल हुए थे. विभिन्न वर्ग समूहों में प्रशिक्षित होने के बाद किसानों ने मार्च की शुरुआत में ही बागों में लीची के बक्से लगाए, जिससे शहद की उत्पादकता बढ़ी. राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक विकास दास ने कहा कि केंद्र में विभिन्न समूह बनाकर किसानों को शहद उत्पादन का प्रशिक्षण दिया गया था, जिससे किसानों को काफी फायदा हुआ है.
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