1917 में नहीं 1897 में ही महात्मा गांधी का बिहार से जुड़ गया था रिश्ता, जानें किससे की थी मदद की गुहार

महात्मा गांधी ने भारत के कई ताकतवर लोगों को पत्र लिखकर मदद की अपील की. इसके बावजूद गांधी के आंदोलन की खबरें इंग्लैंड के अखबारों में जगह नहीं पा सकी. ऐसे में गांधी को दरभंगा के महाराजा और शाही परिषद के पहले निर्वाचित भारतीय सदस्य लक्ष्मीश्वर सिंह से संपर्क करने को कहा गया.

By Ashish Jha | January 30, 2023 1:41 PM
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पटना. मोहन दास करमचंद गांधी का बिहार से रिश्ता चंपारण आने से बहुत पहले ही बिहार से जुड़ गया था. गांधी के बिहार से रिश्ते का इतिहास उनके चंपारण आने से करीब 20 साल पुराना है. यह रिश्ता तब बना जब गांधी दक्षिण अफ्रीका में थे. गांधी दक्षिण अफ्रीका में भारतीय मूल के लोगों के साथ हो रहे भेदभाव नीति का विरोध कर रहे थे. दक्षिण अफ्रीका में गांधी की मुहिम को जन मानस का समर्थन तो मिल रहा था, लेकिन स्थानीय मीडिया में उनकी बात प्रकाशित नहीं हो पा रही थी. गांधी की परेशानी यह थी कि जिस सरकार का वो विरोध कर रहे थे, वो इंग्लैंड में थी और वहां तक अपनी बात पहुंचाने का एक मात्र माध्यम उस वक्त मीडिया ही था.

महात्मा गांधी ने भारत के कई ताकतवर लोगों को पत्र लिखकर मदद की अपील की. इसके बावजूद गांधी के आंदोलन की खबरें इंग्लैंड के अखबारों में जगह नहीं पा सकी. ऐसे में गांधी को दरभंगा के महाराजा और शाही परिषद के पहले निर्वाचित भारतीय सदस्य लक्ष्मीश्वर सिंह से संपर्क करने को कहा गया. दोनों के बीच संपर्क के सूत्रधार बने एक अंग्रेज शिक्षक जो लक्ष्मीश्वर सिंह के शिक्षक भी थे और बाद में उस स्कूल के प्रधानाध्यापक भी बने जिसमें गांधी ने पढ़ाई की. गांधी को अन्य स्रोतों से भी ज्ञात हुआ कि लक्ष्मीश्वर सिंह इस मामले में उनकी मदद कर सकते हैं. ऐसे में गांधी ने नटाल (दक्षिण अफ्रीका) से लक्ष्मीश्वर सिंह को एक पत्र लिखा. पत्र में गांधी ने विस्तार से अपनी मजबूरी का जिक्र किया है और उन तमाम दस्तावेजों को संलग्न करने की बात कही है जिसके आधार पर वो भारतीयों के लिए आवाज उठा रहे थे. गांधी ने खुद इस पत्र का अपने समग्र लेखन में जिक्र किया है.

गांधी का पत्र मिलते ही लक्ष्मीश्वर सिंह ने उसपर कार्रवाई शुरू कर दी. उन्होंने गांधी को आश्वस्त किया कि वो उनकी हर तरह से मदद करेंगे. उन्होंने गांधी को लिखा कि उनके पत्र के साथ बहुत सारे दस्तावेज उन्हें मिले हैं, जिससे पता चलता है कि वो जिस मुहिम को चला रखे हैं उसकी आवाज लंदन तक पहुंचनी चाहिए. महाराजा ने पत्र के आलोक में लंदन टाइम्स के संपादक को एक पत्र लिखा. उस पत्र में गांधी की आवाज को अखबार में जगह देने की अपील की गयी. महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह के इस प्रयास के बाद न केवल गांधी का आंदोलन अखबारों की सुर्खियां बनी, बल्कि गांधी के साथ हमेशा एक पत्रकार चलने लगा. मीडिया प्रबंधन की चिंता फिर गांधी के सामने कभी उत्पन्न नहीं हुई.

लक्ष्मीश्वर सिंह पर जटाशंकर झा की लिखी किताब Biography Of An Indian Patriot Maharaja Lakshmishwar Singh Of Darbhanga में इस बात का भी उल्लेख मिलता है कि महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह ने दक्षिण अफ्रीका में शुरू हुए आंदोलन को आर्थिक मदद करने के लिए साउथ अफ्रीका इंडियन एसोसिएशन की स्थापना की थी. इस संस्था के माध्यम से वहां के लोगों और आंदोलन को कई प्रकार की मदद दी जाने लगी. दुभार्ग्य रहा कि महज दो साल बाद ही 1898 में महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह का निधन हो गया और बिहार का गांधी से रिश्ता का एक मजबूत स्तंभ गिर गया. इसके बावजूद गांधी और दरभंगा राज परिवार के बीच सतत संपर्क बना रहा. लक्ष्मीश्वर सिंह के भतीजे महाराजा कामेश्वर सिंह के संबंध में गांधी ने 1946 में एक साक्षात्कार के दौरान कहा था कि वो मेरे पुत्र समान हैं. इस रिश्ते की नींव महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह ने ही रखी थी.

गांधी को चंपारण लाने का प्रयास राजकुमार शुक्ल काफी दिनों से कर रहे थे, लेकिन गांधी बार बार उनके अनुरोध को टाल दिया करते थे. आखिरकार शुक्ल सफल हुए और गांधी चंपारण आने को तैयार हुए. गांधी ने बिहार के चंपारण में प्रवास करने से पूर्व दो लोगों से खास तौर पर कोलकाता में मुलाकात की. जिनमें एक दरभंगा महाराज रमेश्वर सिंह थे. पटना रवाना होने से पहले गांधी की कोलकाता में दरभंगा महाराज के साथ रात के खाने पर लंबी चर्चा हुई.

इतिहासकार तेजकर झा कहते हैं कि उसी दौरान तिरहुत रेलवे को रमेश्वर सिंह ने एक पत्र लिखकर आग्रह किया था कि तीसरे दर्जे में शौचालय की व्यवस्था की जाये. ऐसा भारत में सबसे पहले तिरहुत रेलवे ने ही किया. इतना ही नहीं मिथिला मिहिर अखबार के 19 अप्रैल के अंक में महात्मा शब्द का उल्लेख हुआ, जो किसी अखबार में गांधी के लिए पहली बार हुआ था. पूरे चंपारण आंदोलन के दौरान दो लोगों को नियमित पत्र जाता रहा उनमें एक भारत के वायसराय थे और दूसरे दरभंगा के महाराजा. गौरतलब है कि वायसराय को पत्र लिखने की जिम्मेदारी गांधी के सचिव को थी, जबकि दरभंगा महाराज को पत्र गांधी खुद लिखते थे. यह गांधी का बिहार खासकर दरभंगा से संबंध को दिखाता है.

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