Bihar Assembly Elections 2025 बिहार में विधान सभा चुनाव से पहले कांग्रेस अपनी जमीन तैयार करने में लगी है. तीन महीने में तीसरी बार राहुल गांधी का बिहार दौरे को राजनीतिक पंडित इससे ही जोड़कर देख रहे हैं. लेकिन, राहुल गांधी के ताबड़तोड़ दौरों के बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि कांग्रेस का बिहार में वोट बैंक कौन होगा?
कांग्रेस किस वोट बैंक पर फोकस कर रही है? लंबे समय तक सत्ता से दूर रहने या फिर गठबंधन के कारण परंपरागत वोट वैंक ने कांग्रेस से अपना नाता तोड़ लिया है. फिर कांग्रेस बिहार में अपनी कैसे जमीन तैयार करने की तैयारी कर रही है.
बीजेपी नेता और पूर्व सांसद रामकृपाल यादव कहते हैं कि कांग्रेस के पास नेता और वोट दोनों का अभाव है. इसपर पलटवार करते हुए कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम कहते हैं बीजेपी अपनी देखे. अगर उनके पास वोट और नेता हैं तो वे यह चुनाव अकेले अपने दम पर लड़ कर दिखाये.
सीनियर पत्रकार लव कुमार मिश्रा कहते हैं कि बहरहाल कभी सवर्णों के वर्चस्व वाली बिहार की राजनीति में अब पिछड़ों का दबदबा है.यही कारण है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी बिहार में इसपर ही बात कर रहे हैं.
2020 के विधान सभा चुनाव में जातिय स्थिति
वर्ष 2020 में हुए विधान सभा चुनाव के आधार पर वोट बैंक की चर्चा करें तो बिहार में 26 फीसदी ओबीसी और 26 फीसदी ईबीसी का वोट बैंक थे. ओबीसी में बड़ा हिस्सा यादवों का है जो 14 फीसदी के करीब है. यादवों को राजद का परंपरागत वोट बैंक समझा जाता है. इसके अलावा ओबीसी में 8 फीसदी कुशवाहा और 4 फीसदी कुर्मी वोट बैंक है. इसपर बिहार के सीएम नीतीश कुमार का प्रभाव है.
वैसे उपेंद्र कुशवाहा भी इसपर दावा करते हैं. उनका दावा आठ फीसदी कुशवाहा समाज के वोट बैंक को लेकर हैं. इनके अलावा 16 फीसदी वोट बैंक मुस्लिमों का है. इसपर वर्ष 1990 से पहले कांग्रेस का एकक्षत्र राज हुआ करता था. लेकिन,मौजूदा सियासी समीकरण में इस वोट बैंक पर राजद का प्रभाव दिखता है. कांग्रेस आरजेडी के इस परंपरागत वोट बैंक पर जेडीयू भी दावा करती है.
बिहार में अति पिछड़ी जाति के मतदाताओं का हिस्सा 26 फीसदी के करीब है. इसमें लोहार, कहार, सुनार, कुम्हार, ततवा, बढ़ई, केवट, मलाह, धानुक, माली, नोनी आदि जातियां आती हैं. 2005 के चुनावों से पहले ये अलग-अलग दलों को वोट करते रहे हैं. लेकिन 2005 के बाद से इनका बड़ा हिस्सा नीतीश के साथ रहा है.
दलित वोट बैंक पर नजर
बिहार में दलितों का वोट परसेंट 16 फीसदी है. इनमें सबसे ज्यादा पांच फीसदी के करीब पासवान हैं. बाकी 11 प्रतिशत में महादलित जातियां (पासी, रविदास, धोबी, चमार, राजवंशी, मुसहर, डोम आदि) हैं, पासवान वोटरों का झुकाव राम विलास पासवान के समय से लोजपा की तरफ रहा है. इस चुनाव में इसमें भी सेंघमारी की संभावना है. रामविलास पासवान के इस परंपरागत वोट बैंक पर उनके भाई पशुपति पारस भी दावा कर रहे हैं.
जबकि रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान इसपर अपना दावा करते हैं. पासवान वोटर पर परिवार में मची लूट पर बिहार में विपक्षी दलों की नजर है. कांग्रेस भी इसपर अपनी पैनी नजर रखे हुए है. शेष महादलित जातियों का झुकाव भी 2010 के बाद से जेडीयू की तरफ रहा है. जीतन राम मांझी के जदयू से अलग होने के बाद इस वोट बैंक में भी दरार पड़ी.
हालांकि जीतन राम मांझी एनडीए के ही घटक दल में शामिल हैं. इसलिए कांग्रेस और तेजस्वी की इस जाति पर विशेष जोड़ है. पासवान इसको देखते हुए कांग्रेस इस जाति में भी अपनी संभावना देख रही है.
राज्य में 15 फीसदी वोट बैंक उच्च जातियों (भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण और कायस्थ) का है. यह वोट बैंक पहले कांग्रेस के पास था. लेकिन अब भाजपा और कांग्रेस इसपर दावा करती है.
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