Bihar Court News: बिहार में जज के एक चौथाई पद खाली, एक जज पर 2344 मुकदमों का बोझ

Bihar Court News: बिहार में अदालतों की दोनों श्रेणी के कोर्ट के पदों को अगर मिला दिया जाए, तो संख्या 2072 हो जाती है. हाईकोर्ट के 18 और निचली अदालतों के 483 पद को मिला खाली पदों की संख्या 501 हो जाती है. इस तरह एक चौथाई पद खाली हैं.

By Ashish Jha | December 20, 2024 10:20 AM
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Bihar Court News: पटना. बिहार में त्वरित न्याय का सपना महज कागजों में सिमट कर रह गया है. आम जनों को त्वरित न्याय मिलना लगातार कठिन होता जा रहा है. उच्च न्यायालय से लेकर निचली अदालतों तक बिहार में जजों के एक-चौथाई पद खाली पड़े हैं. जजों की संख्या कम होने से अदालतों पर मुकदमों का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है और इससे केस के निपटारे में देरी के साथ साथ परेशानी हो रही है. बिहार सरकार के विधि विभाग के स्तर से न्यायालयों में रिक्त पदों को लेकर एक रिपोर्ट तैयार की गई है, ताकि इन्हें भरने की कवायद शुरू की जा सके. रिपोर्ट में इस बात को लेकर गंभीर चिंता प्रकट की गयी है. रिपोर्ट में कहा गया है कि इन पदों पर जल्द से जल्द बहाली आवश्यक है.

हाईकोर्ट से निचली अदालत तक में जज के पद खाली

विभागीय रिपोर्ट के अनुसार पटना हाईकोर्ट में जज के स्वीकृत पदों की संख्या 53 है, जिसमें 40 पद स्थाई और 13 अतिरिक्त पद शामिल हैं. वर्तमान में इसमें 35 जज पदस्थापित हैं. इस तरह 18 पद खाली पड़े हैं. इसमें स्थाई पद में 5 और अतिरिक्त जज के 13 पद शामिल हैं. हाईकोर्ट को पिछले साल भी दो और इस वर्ष भी दो न्यायाधीश मिले हैं. बावजूद इसके 18 पद रिक्त पड़े हैं. इसी प्रकार बिहार के निचली अदालतों में जज के स्वीकृत पदों की संख्या 2019 है. वर्तमान में इसमें 1536 जज हैं. इस तरह 483 पद रिक्त हैं. दोनों श्रेणी के कोर्ट के पदों को अगर मिला दिया जाए, तो संख्या 2072 हो जाती है. हाईकोर्ट के 18 और निचली अदालतों के 483 पद को मिला खाली पदों की संख्या 501 हो जाती है. इस तरह एक चौथाई पद खाली हैं.

निचली अदालतों में प्रति जज 2344 मुकदमे

जजों की संख्या कम होने से कोर्ट में लंबित मामलों की संख्या में लगातार बढ़ती जा रही है. इससे जजों पर मुकदमों के निपटारे का दबाव बढ़ता जा रहा है. निचली अदालतों में एक जज पर औसतन 2344 मुकदमों के निपटारे का जिम्मा पहले से है. जिला और अधिनस्थ अदालतों में 36 लाख से ज्यादा केस पेंडिंग हैं. बिहार में हर साल औसतन एक लाख मुकदमों की संख्या बढ़ जाती है. जजों की मौजूदा संख्या से यह संख्या काफी अधिक है. शराबबंदी के बाद अदालतों में मुकदमों की संख्या में अचानक बढ़ोतरी हुई है. रिपोर्ट की माने तो अभी तमाम अदालतों में अधिकतर शराब से जुड़े मामले की ही सुनवाई हो रही है. दूसरे मामले को तारीख पर तारीख ही मिल रही है.

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