Bihar Politics: बिहार को खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में अग्रणी बनाने के लिए चिराग पासवान ने मंत्रालय की नीति, संसाधन और संस्थागत ध्यान को पूरी तरह से केंद्रित किया है. पिछले एक वर्ष में लिए गए निर्णयों ने न केवल बिहार की क्षमता को राष्ट्रीय पहचान दिलाई है, बल्कि ज़मीनी परिवर्तन की ठोस शुरुआत भी की है. चिराग पासवन ने कहा कि PMFME योजना के अंतर्गत हमने देश में सर्वाधिक 624 करोड़ से अधिक के निवेश के साथ 10,270 इकाइयों को बिहार के लिए स्वीकृति दी. कुल मिलाकर अब तक 25,577 से अधिक इकाइयों को 1,765 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता दी जा चुकी है, जो इस योजना के अंतर्गत बिहार को भारत में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाला राज्य बनाती है. चालू वर्ष के लिए भी, हमने बिहार के लिए 329 करोड़ की राशि स्वीकृत की है, जो देश के किसी भी राज्य के लिए सबसे बड़ा आवंटन है. बुनियादी ढांचे के निर्माण में भी हमने निर्णायक पहल की. पीएमकेएसवाई योजना के तहत हमने बिहार के लिए 749 करोड़ की कुल लागत वाली 15 परियोजनाएं मंजूर कीं, जिनमें कोल्ड चेन इकाइयां, एग्रो-प्रोसेसिंग क्लस्टर और एक मेगा फूड पार्क शामिल हैं, जो क्षेत्र को वास्तविक गति देने के लिए आवश्यक है.
Q-1. खाद्य प्रसंस्करण के माध्यम से भारत के लिए आपकी व्यापक आर्थिक दृष्टि क्या है?
Ans- पीएम मोदी ने एक ऐसे भविष्य की परिकल्पना की है, जहां भारत न केवल स्वयं को बल्कि पूरी दुनिया को गुणवत्तापूर्ण खाद्य सामग्री उपलब्ध कराए. उसी सोच से प्रेरित होकर, मेरा लक्ष्य भारत को एक ग्लोबल फ़ूड बास्केट बनाना है, जो सिर्फ उत्पादन में ही नहीं बल्कि मूल्यवर्धन, नवाचार और वैश्विक बाजार की अगुवाई में भी अग्रणी हो. हम पहले ही दुनिया के सबसे बड़े दूध, दलहन और मसालों के उत्पादक हैं, और फलों व सब्ज़ियों के दूसरे सबसे बड़े उत्पादक हैं. इसके बावजूद, हमारी कुल उपज का केवल 10% से भी कम भाग ही प्रसंस्कृत होता है. यह अंतर हमारी अर्थव्यवस्था की एक बड़ी, अप्रयुक्त क्षमता को दर्शाता है. खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में अब तक के प्रयासों ने सकारात्मक परिणाम दिए हैं। विनिर्माण क्षेत्र में इसका सकल मूल्य वर्धन (GVA) 7.7% तक बढ़ चुका है और यह संगठित क्षेत्र के रोजगार का 12.4% से अधिक हिस्सा प्रदान करता है, लेकिन यह इस क्षेत्र की अपर संभावनाओं की केवल एक झलक मात्र है.
चिराग पासवान ने कहा कि पहला, हमारे राष्ट्रीय प्रसंस्करण के स्तर को वैश्विक मानकों के अनुरूप लाना. दूसरा, कृषि निर्यात में प्रसंस्कृत खाद्य की हिस्सेदारी बढ़ाकर हमारी निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाना है. वहीं तीसरा, भारत को गुणवत्ता, नवाचार और पैमाने के लिए वैश्विक गंतव्य के रूप में स्थापित करना है.
आज भारत की 65% आबादी 35 वर्ष से कम उम्र की है और ग्रामीण व शहरी दोनों क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति आय बढ़ रही है. हमारे पास कार्यबल, घरेलू और वैश्विक मांग तथा उद्यमशीलता की भावना है, जो इस दृष्टि को साकार कर सकती है. जैसे-जैसे खाद्य प्रसंस्करण बढ़ेगा, खाद्य अपव्यय घटेगा, आमदनी बढ़ेगी, और हमारे किसान सशक्त होंगे. यही वह भारत है, जिसका निर्माण हम सभी मिलकर करना चाहते हैं.
Q-2. इस दृष्टि में आप बिहार को कहाँ देखते हैं?
Ans- भारत की खाद्य प्रसंस्करण यात्रा में अग्रणी भूमिका निभाने की पूरी क्षमता रखता है, इसकी सबसे बड़ी ताकत इसकी विविधता और सामर्थ्य में निहित है, जो भूगोल, कृषि उत्पादन और युवा जनशक्ति के अद्वितीय संगम से उपजती है. सबसे पहले, हम भौगोलिक दृष्टि से समृद्ध हैं. बिहार, पूर्वी भारत का प्रवेश द्वार है- जो उत्तर, मध्य और पूर्वी राज्यों को न केवल नेपाल और उत्तर-पूर्व भारत से जोड़ता है, बल्कि देश के सबसे घनी आबादी वाले उपभोक्ता क्षेत्रों के भी बेहद करीब है. किसी भी खाद्य प्रसंस्करण इकाई के लिए जो अपने उत्पादों को समयबद्ध और लागत-कुशल तरीके से बाजारों तक पहुँचाना चाहती है, बिहार एक रणनीतिक स्थान है. इसके अलावा, यहां एक मजबूत कृषि आधार है. मखाना और लीची से लेकर मक्का, आम, शहद और डेयरी तक-बिहार भरपूर मात्रा में उत्पादन करता है, और यह सभी मौसमों में होता है, जो खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिए एक स्थायी और भरोसेमंद आपूर्ति श्रृंखला सुनिश्चित करता है.
इसके अतिरिक्त, बिहार सच्चे मायनों में लागत-कुशल है. भूमि, बिजली और बुनियादी ढांचे में निरंतर सुधार हो रहा है, और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यहां एक बड़ा युवा कार्यबल उपलब्ध है, जो कौशल सीखने और औद्योगिक विकास में भागीदारी के लिए तैयार है.
Q-3. इस दृष्टि को साकार करने के लिए आपने क्या कदम उठाए हैं?
Ans- हमारा दृष्टिकोण तीन प्रमुख स्तरों पर केंद्रित है, बुनियादी ढांचे का विकास, उद्यमों को सशक्त बनाना, और संस्थागत क्षमता का निर्माण. बुनियादी ढांचे के स्तर पर, हम भारत के खाद्य प्रसंस्करण तंत्र की रीढ़ को लगातार मजबूत कर रहे हैं. PMKSY योजना के माध्यम से, हमने देश भर में मेगा फूड पार्कों, कोल्ड चेन, खाद्य परीक्षण प्रयोगशालाओं और कृषि-प्रसंस्करण क्लस्टरों की स्थापना में सहायता दी है. बिहार में अब तक 15 ऐसी परियोजनाओं को मंजूरी दी जा चुकी है, जिनमें 700 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश प्रस्तावित है. ये प्रयास राज्य में आधुनिक और प्रतिस्पर्धी खाद्य आपूर्ति शृंखला के लिए आवश्यक समग्र बुनियादी ढांचा तैयार कर रहे हैं. उद्यम स्तर पर, मेरे मंत्रालय की PMFME योजना एक सच्ची जमीनी क्रांति की कहानी बनकर उभरी है. यह योजना व्यक्तिगत सूक्ष्म इकाइयों को 35% तक की सब्सिडी (अधिकतम 10 लाख रुपये) और कॉमन इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए 3 करोड़ रुपये तक का समर्थन प्रदान करती है. राष्ट्रीय स्तर पर अब तक 92,000 से अधिक सूक्ष्म उद्यमों को इसका लाभ मिल चुका है. मुझे यह साझा करते हुए गर्व है कि वर्ष 2024–25 में अकेले बिहार में 10,270 इकाइयों को मंजूरी दी गई, जो देशभर में सबसे अधिक है, इनमें से दो-तिहाई इकाइयों को भुगतान भी आरंभ हो चुका है.
हम PLI योजना के माध्यम से बड़े पैमाने पर निवेश भी आकर्षित कर रहे हैं, जो क्षमता निर्माण, रोजगार सृजन और भारत को वैश्विक खाद्य विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित करने में मदद कर रही है. 10,900 करोड़ रुपये के परिव्यय वाली इस योजना से हमने 760 से अधिक परियोजनाओं को मंजूरी दी है, जिसने 1.6 लाख करोड़ रुपये के प्रतिबद्ध निवेश को आकर्षित किया है. बिहार में भी इस योजना के तहत सात इकाइयों को मंजूरी मिली है, जिनसे 674 करोड़ रुपये का निवेश साकार हुआ है. इनमें ब्रिटानिया, बिकाजी, एचयूएल और टाटा कंज्यूमर प्रोडक्ट्स जैसे प्रतिष्ठित ब्रांड शामिल हैं, जो दर्शाता है कि उद्योग जगत बिहार को खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में दीर्घकालिक विकास के लिए एक प्राथमिक केंद्र मानता है. बिहार में राष्ट्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी, उद्यमिता और प्रबंधन संस्थान (निफ्टेम) की स्थापना को मंजूरी दे दी गई है, जो देश में इस प्रकार का तीसरा संस्थान होगा. यह एक बड़ा कदम है क्योंकि यह पूर्वी भारत में उच्च-गुणवत्ता वाला अनुसंधान, कौशल विकास और उद्यम समर्थन लाता है, जो लंबे समय से उपज में तो समृद्ध रहा है, लेकिन खाद्य प्रौद्योगिकी बुनियादी ढांचे में पिछड़ा रहा है. इसके साथ ही, मेरे मंत्रालय द्वारा पीएमएफएमई के अंतर्गत नालंदा और समस्तीपुर में इन्क्यूबेशन सेंटर तथा पटना में एक क्षमता निर्माण केंद्र की स्थापना की जा रही है. ये सुविधाएं स्थानीय उद्यमियों को प्रशिक्षण, उत्पाद विकास, ब्रांडिंग और विपणन तक पहुंच प्रदान करेंगी, जिससे आकांक्षा और क्रियान्वयन के बीच की खाई पाटने में मदद मिल रही है.
Q- 4. इस यात्रा में आप स्टार्टअप्स, महिलाओं और स्वयं सहायता समूहों (SHGs) को कैसे देखते हैं?
Ans- विकसित भारत 2047’ के लक्ष्य में प्रधानमंत्री मोदी ने ‘GYAN’ – गरीब, युवा, अन्नदाता और नारीशक्ति – को विकास के चार केंद्रीय स्तंभ बताया है. मेरा स्वयं का दृष्टिकोण भी अक्सर “M-Y समीकरण” पर केंद्रित रहता है, जहां महिला और युवा सशक्तिकरण, राष्ट्रीय विकास की आधारशिला के रूप में उभरते हैं. मेरे लिए यह केवल एक नीतिगत प्राथमिकता नहीं, बल्कि एक व्यक्तिगत संकल्प है. इसकी प्रेरणा मुझे मेरे स्वर्गीय पिता के उन शब्दों से मिली है, जिन्होंने जीवन भर वंचितों की आवाज़ को प्राथमिकता दी: “मैं उस घर में दिया जलाने चला हूं, जहां सदियों से अंधेरा है”. समावेश और उत्थान की यही भावना मेरे हर प्रयास की नींव है. हमारे मंत्रालय ने PMFME योजना के तहत अब तक, लगभग तीन लाख एसएचजी सदस्यों को, जिनमें से अधिकांश महिलाएं हैं. प्रत्येक को 4 लाख रुपये तक की सीड कैपिटल उपलब्ध करायी है. लेकिन हमारा फोकस केवल वित्तीय सहायता तक सीमित नहीं है. हमारा लक्ष्य एक ऐसा इकोसिस्टम खड़ा करना है, जहां प्रशिक्षण, मेंटरिंग, सामान्य सुविधा केंद्रों और जिला संसाधन व्यक्तियों के माध्यम से तकनीक और बाज़ार तक पहुंच हर नए उद्यमी की दहलीज़ तक सुनिश्चित हो सके.
हमने स्टार्टअप ग्रैंड चैलेंज जैसी पहलों के माध्यम से नवाचार के लिए भी जगह बनाई है, जो अपशिष्ट प्रबंधन, जल दक्षता और खाद्य प्रौद्योगिकी में नए विचारों को प्रोत्साहित करती है. सुफलम् (SUFALAM) जैसी पहलों के माध्यम से, हम स्टार्टअप को पारंपरिक व्यंजनों से लेकर अत्याधुनिक उत्पादों तक सब कुछ प्रदर्शित करने का मंच देते हैं. 2025 में आयोजित सुफलाम के संस्करण में 23 राज्यों के 500 से अधिक उद्यमियों की भागीदारी दर्शाती है कि नवाचार अब इस क्षेत्र में व्यावसायिक रूप ले रहा है.
इन्क्यूबेशन सुविधाओं के माध्यम से, हम प्रारंभिक चरण के उद्यमियों को उनके विचारों को आकार देने में मदद कर रहे हैं. ये केंद्र आधुनिक उपकरणों, प्रयोगशालाओं, पैकेजिंग सुविधाओं, खाद्य सुरक्षा मार्गदर्शन और अनुपालन सहायता जैसी सेवाएं प्रदान करते हैं, जिससे नवोदित उद्यमियों के लिए रास्ता आसान बनता है और विकास की रफ्तार बढ़ती है. आज हमारे पास कई प्रेरणादायक उदाहरण हैं, जहां पीएमएफएमई के अंतर्गत समर्थित स्वयं सहायता समूहों ने न केवल राष्ट्रीय ब्रांड खड़े किए हैं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में अपने उत्पादों का निर्यात भी प्रारंभ कर दिया है. यह इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि यदि जमीनी स्तर की उद्यमिता को उपयुक्त संस्थागत समर्थन मिले, तो वह वैश्विक प्रतिस्पर्धा में भी सफल हो सकती है. हमारा उद्देश्य स्पष्ट है- स्थानीय प्रतिभा और नवाचार को सशक्त बनाकर उन्हें राष्ट्रीय विकास की धारा से जोड़ना और भारत की खाद्य अर्थव्यवस्था को नीचे से ऊपर तक मजबूती देना है.
Q- 5. अब तक आपने बिहार के लिए क्या किया है?
Ans- राज्य में गुणवत्ता अवसंरचना की एक बड़ी कमी को हमने प्राथमिकता के साथ चिन्हित किया. लंबे समय तक बिहार में खाद्य परीक्षण प्रयोगशालाओं का नितांत अभाव रहा, जिसके कारण अधिकांश प्रोसेसरों को अपने उत्पादों के सैंपल प्रमाणन के लिए कोलकाता जैसे दूरस्थ स्थानों पर भेजने पड़ते थे. इससे न केवल समय और लागत में वृद्धि होती थी, बल्कि उनके स्केल-अप की क्षमता भी बाधित होती थी.
हमने इस प्रणालीगत कमजोरी को दूर करने के लिए तत्काल पहल की, और बिहार के लिए दो अत्याधुनिक खाद्य परीक्षण प्रयोगशालाओं की स्थापना को मंजूरी दी. ये प्रयोगशालाएं अब स्थानीय प्रोसेसरों को आवश्यक गुणवत्ता प्रमाणीकरण राज्य के भीतर ही उपलब्ध कराएंगी, जिससे प्रमाणन प्रक्रिया अधिक सुलभ, तेज़ और बाज़ार की आवश्यकताओं के अनुरूप हो सकेगी. बड़े निवेशों के लिए, मेरे मंत्रालय ने PLI योजना के अंतर्गत बिहार में सात परियोजनाओं का अनुमोदन दिया है, जिनसे 674 करोड़ का निवेश आया है.
बिहार में राष्ट्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी संस्थान (NIFTEM) की स्थापना को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है. यह संस्थान पूर्वी भारत को अनुसंधान, कौशल और उद्यमिता का एकीकृत मंच प्रदान करेगा, और क्षेत्र को तकनीक आधारित विकास की नई दिशा देगा. हमारी पहल पर मखाना को पहली बार राष्ट्रीय खाद्य नीति के केंद्र में लाया गया है. अब इसके लिए एक समर्पित बोर्ड की स्थापना की घोषणा भी की जा चुकी है, जो मखाना उत्पादन, प्रसंस्करण, मूल्य संवर्धन और निर्यात को एक संगठित और वैज्ञानिक दिशा देगा.
बुनियादी ढांचे और नीति से परे, हमने बिहार के उत्पादकों को वैश्विक बाज़ारों से जोड़ने का भी काम किया है. मई 2025 में, हमने राज्य में पहली बार अंतर्राष्ट्रीय खरीदार-विक्रेता सम्मेलन आयोजित किया, जिसमें 70 अंतर्राष्ट्रीय खरीदारों और स्थानीय मखाना, लीची, आम तथा कतरनी चावल उत्पादकों के बीच 500 से अधिक संरचित B2B बैठकें हुईं, इसके परिणामस्वरूप, वैश्विक कंग्लोमरेट्स और बिहार के एफपीओ (किसान उत्पादक संगठनों) के बीच आम तथा अन्य प्रमुख उत्पादों की दीर्घकालिक आपूर्ति के लिए कई MOUs पर हस्ताक्षर हुए. दिसंबर 2024 में आयोजित बिहार बिज़नेस कनेक्ट के माध्यम से, हमने 2,181 करोड़ के निवेश प्रस्ताव सुनिश्चित किए, जिनमें कोका-कोला और ग्रस एंड ग्रेड जैसे नाम शामिल हैं. इन निवेशों से राज्य में 4,000 से अधिक नए रोज़गार सृजित होने की संभावना है. बहुत लंबे समय तक, बिहार एक नकारात्मक धारणा का शिकार बना रहा है, लेकिन आज यह धारणा बदल रही है. आज, निवेश वास्तविक हैं, बुनियादी ढांचा दिखाई दे रहा है और अवसर ज़मीन तक पहुंच रहे हैं. यह नया अध्याय न केवल पिछड़ेपन को दूर करने के बारे में है, बल्कि अग्रणी भूमिका निभाने के बारे में है. यह मेरा वादा है कि जब तक मुझे सेवा का अवसर मिलेगा, मैं यह सुनिश्चित करता रहूंगा कि बिहार फिर कभी पीछे न रहे.
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