वादों का आइना टिकट में दिखेगा या धुंध में छिपेगा?
राजनीति में वादों और हकीकत की दूरी उतनी ही होती है, जितनी घोषणापत्र और उम्मीदवारों की सूची के बीच. अगर कांग्रेस को सच में अपने सामाजिक न्याय एजेंडे पर खरा उतरना है, तो उसे ‘राजनीतिक साहस’ दिखाना होगा. यानी सामान्य वर्ग की परंपरागत सीटों पर पिछड़े, दलित, और अति पिछड़े वर्ग के उम्मीदवारों को मौका देना होगा. यह वही जमीन है जहां वादे की खेती होती है, लेकिन फसल अक्सर जुमलों की ही निकलती है. हालांकि राहुल गांधी ने प्रदेश कांग्रेस संगठन में इसका प्रयोग किया है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अनुसूचित जाति को दिया है और जिलाध्यक्षों की नियुक्ति में इसका ध्यान रखा गया है.
2020 विधानसभा चुनाव में सर्वाधिक 33 सीटें सवर्णों के खाते में
महागठबंधन में राज्य की 243 विधानसभा सीटों में कुल 70 सीटें कांग्रेस के हिस्से आयी थी. कांग्रेस ने अपनी सीटों के बंटवारे में सबसे अधिक उच्च जातियों को सीटें दी. उस समय कांग्रेस की सीटें भूमिहार, ब्राह्मण, राजपूत, कायस्थ, ओबीसी, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अत्यंत पिछड़ा वर्ग और मुस्लिम समुदाय के बीच वितरित की. इसें सर्वाटिक सीटों की टुकडा भूमिहार जाति को मिला. कांग्रेस ने 70 सीटों में कुल 11 सीटों पर भूमिहार प्रत्याशियों को उतारा जबकि नौ सीटों पर ब्राह्मण और नौ सीटें राजपूत समाज के हिस्से में आयी. कायस्थ समाज को कुल चार सीटें मिलीं. इस प्रकार से कांग्रेस के हिस्से की कुल 33 सीटें सवर्ण जातियों के हिस्से में आयी थी. शेष बची 37 सीटों में पिछड़े वर्ग को नौ सीटें, अनुसूचित जाति को 14 सीटें, अनुसूचित जनजाति को दो सीटें, अति पिछड़ा वर्ग को दो सीटें और मुस्लिम समाज को 14 सीटें दी गयी.
जीतने वाले 19 में आठ सवर्ण
2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की टिकट पर चुनाव जीतने वाले 19 विधायकों में कुल आठ सवर्ण थे. इनमें इनमें राजपूत एक,भूमिहार चार और तीन बाह्मण जाति से आये. जबकि बाकी के 11 में तीन अल्पसंख्यक, तीन अनुसूचित जाति, एक अनुसचित जन जाति तथा एक वैश्य और एक यादव प्रमुख रहे.
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