इमरजेंसी पर विस्तार से चर्चा
जेपी के सहयोगी रहे आचार्य राममूर्ति की किताब जेपी की विरासत में इमरजेंसी पर विस्तार से चर्चा है. जेपी ने बाद में अपना बयान दिया, जिसमें उन्होंने बताया कि गिरफ्तारी के बाद उन्हें पुलिस हरियाणा के सोहणा के एक विश्राम गृह में रखा था. मोरारजी देसाई भी वहीं रखे गये, लेकिन दोनों को अलग-अलग कमरे में रखा गया. दो दिन के लिए जेपी को एम्स में डाक्टरी जांच के लिए लाया गया. इसके बाद चंडीगढ़ के पीजीआई में पुलिस से घिरे एक छोटे से कमरे में बंद कर दिया गया. चार महीने के बाद 14 नवंबर,1975 को जेपी को उस समय रिहा किया गया, जब उनकी बीमारी असाध्य हो गयी और उनके बचने की कोई उम्मीद नहीं रह गयी.
किताब के पृष्ठ संख्या 83 में अंकित है, जेपी की तबियत जब भी कुछ ठीक होती, वे डायरी लिखते. 21 जुलाई, 1975 को उन्होने इंदिरा गांधी को लंबा पत्र लिखा था.
इंदिरा से था बेटी का रिश्ता
दो महीने बाद जेपी ने जेल से एक पत्र लिख कर बयान दिया, जिसमें उन्होंने कहा कि किस तरह वे गिरफ्तार किये गये. इस दौरान उनकी बीमारी बढ़ गयी. आचार्य राममूर्ति लिखते हैं, जेपी ने सोचा भी नहीं था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी इस हद तक जा सकती हैं.
जेपी और इंदिरा गांधी के बीच बाप-बेटी का रिश्ता था
आचार्य राममूर्ति लिखते हैं, जेपी और इंदिरा गांधी के बीच बाप-बेटी का रिश्ता था. बेटी देश की प्रधानमंत्री थीं. बाप, के रूप में जेपी एक नागरिक, ऐसा नागरिक जिसके पास न कोई पद था और न उपाधि. वह खालिस नागरिक था. जेपी एक ऐसे आदमी थे, जिन्होनें अपनी जवानी देश की आजादी की लड़ाई में खपा दी थी. 1942 के क्रांति के वे पहली कतार के हीरो थे. वे लिखते हैं, जेपी ने इंद्रासन के इंद्र बनने की जगह श्मसान का शिव बनना पसंद किया था. किताब में आचार्य लिखते हैं, जेपी को उनकी बेटी ने ही बंदी बनाया.
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